दुनियाँ की
समझदारी सीखी थी
दुनिया जीत
लेने का उमंग
तभी बुढ़ापे ने
दस्तक दी
सब कुछ सिमट गया
जवानी दौड
गुजारी थी
रात दिन सब एक
किया
अच्छा, बुरा
सब भूलकर
घर को ही
बाज़ार बनाया था
तभी
बच्चे बड़े होगए
सब कुछ सिमट गया
गर्म हवाओ से
राहत थी
शाम ठंडी और
सुबह गर्म
मन के भीतर
नयी उमंग
तभी ठण्ड ने
सब कुछ
अपने में सिमट
लिया
मेरा-मेरा
करते थे
एक रात मेरा शारीर
मेरा न रहा
एक पल में सब
कुछ
सिमट गया
रिंकी
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