Tuesday, December 4, 2018

सब कुछ सिमट गया


दुनियाँ की समझदारी सीखी थी
तन बलवान और माथा नर्म
दुनिया जीत लेने का उमंग
तभी बुढ़ापे ने दस्तक दी
सब कुछ सिमट गया

जवानी दौड गुजारी थी
रात दिन सब एक किया
अच्छा, बुरा सब भूलकर
घर को ही बाज़ार बनाया था
तभी बच्चे  बड़े होगए
सब कुछ सिमट गया

गर्म हवाओ से राहत थी
शाम ठंडी और सुबह गर्म
मन के भीतर नयी उमंग
तभी ठण्ड ने सब कुछ
अपने में सिमट लिया


मेरा-मेरा करते थे
एक  रात मेरा शारीर
मेरा न रहा
एक पल में सब कुछ
सिमट गया

रिंकी


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