पहले प्यार की याद
चुभते है शूल की तरह
वो प्यार जिन्दा है आज भी
पत्थर में खीचें लकीर की तरह
प्यार होने या न होने मे
फर्क बस इतना था
जब वो था तो,मैं नहीं था
जब मैं था वो नहीं
प्यार के देहलीज के लकीर पर
हम दोनों खड़े रहे
सुबह से शाम तक परछाई बदली
हम खड़े रहे ठुठे पेड़ की तरह
मौसम बदले
हम खड़े रहे
समाज की तरफ देखते
उनकी सहमति के लिए
आज हम दोनों टकरा गए
आमने-सामने
अजनबी सा चेहरा लिए
Rinki
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