वो जो समझते है की ?
उनकी मन मर्जी चल रही है।
वो जी रहे है हवा की तरह
ज़रा रुक कर देखे !
वो बस पतंग है।
हवा पे सवार
डोर किसी और के पास
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।
अपने सपने में तू तितली
बन उड़ता है।
वो तुझे पतंग समझ
उड़ाते है।
भरा है तुझमे मांझा
किया धार -धार
काटे दुसरो के पतंग को
ये उनका सपना
तू बस है हथियार
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।
टूट जाना बचपन के सपनो का
बिना किसी शोर के
दफ़न हो गए सब
जरूरतो के कब्र में
रात में कभी मिलने आते है वो
धीरे से कहते है।
या तो अपने सपने को जी
या सपने में ही जी
न काट बन पतंग
दूसरे के सपनो को
तू डाल अपना समर्पण
अपने सपनो में
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।
रिंकी
न काट बन पतंग
ReplyDeleteदूसरे के सपनो को
तू डाल अपना समर्पण
अपने सपनो में
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।
वाह! बहुत सुन्दर!!!
I am very much delighted. Thanks for your valuable comment. Vishwamohan
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 02 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Thanks a lot for the opportunity. Ravindra
Deleteबहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
ReplyDeleteहाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
धन्यवाद
Thanks DEESHU, will see your stuff too.
ReplyDeleteरिंकी जी अपने ब्लॉग से टिप्पणी के अप्रोवल की शर्त हटा लें | और टिप्पणियाँ सार्वजिक किया करें |
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