Tuesday, June 30, 2020

पतंग बिना डोर की


वो जो समझते है की ?
उनकी मन मर्जी चल रही है
वो जी रहे है हवा की तरह
ज़रा रुक कर देखे !

वो बस पतंग है
हवा पे सवार
डोर किसी और के पास
तू वही है
जो सोचता है अपने सपने में


अपने सपने में तू तितली
बन उड़ता है
वो तुझे पतंग समझ
उड़ाते है
भरा है तुझमे मांझा

किया धार -धार
काटे दुसरो के पतंग को
ये उनका सपना
तू बस है हथियार
तू वही है
जो सोचता है अपने सपने में


टूट जाना बचपन के सपनो का
बिना किसी शोर के
दफ़न हो गए सब
जरूरतो के कब्र में

रात में कभी मिलने आते है वो
धीरे से कहते है
या तो अपने सपने को जी
या सपने में ही जी

न काट बन पतंग
दूसरे के सपनो को
तू डाल अपना समर्पण
अपने सपनो में
तू वही है
जो सोचता है अपने सपने में


रिंकी



7 comments:

  1. न काट बन पतंग
    दूसरे के सपनो को
    तू डाल अपना समर्पण
    अपने सपनो में
    तू वही है।
    जो सोचता है अपने सपने में।
    वाह! बहुत सुन्दर!!!

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    Replies
    1. I am very much delighted. Thanks for your valuable comment. Vishwamohan

      Delete
  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 02 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
    हाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे

    https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. रिंकी जी अपने ब्लॉग से टिप्पणी के अप्रोवल की शर्त हटा लें | और टिप्पणियाँ सार्वजिक किया करें |

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