ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया,
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया
Everyone does have a book in them. Here is few pages of my life, read it through by my stories,poetry and articles.
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया,
उन दिनों आदमी जंगलों में भटकता फिरता था। आदमी की तरह ही पेड़ भी घूमते-फिरते थे। आदमी उनसे जो कुछ भी कहता, वे उसे सुनते-समझते थे। जो कुछ भी करने को कहता, वे उसे करते थे। कोई आदमी जब कहीं जाना चाहता था तो वह पेड़ से उसे वहाँ तक ले चलने को कहता था। पेड उसकी बात मानता और उसे गंतव्य तक ले जाता था। जब भी कोई आदमी पेड़ को पुकारता, पेड़ आता और उसके साथ जाता।
पेड़ उन दिनों चल ही नहीं सकते थे बल्कि आदमी की तरह दौड़ भी सकते थे। असलियत में, वे वो सारे काम कर सकते थे जो आदमी कर सकता है।
'इलपमन' नाम की एक जगह थी। मनोरंजन की जगह थी। पेड़ और आदमी वहाँ नाचते थे, गाते थे, खुब आनन्द करते थे। वहाँ वे भाइयों की तरह हँसते-खेलते थे।
लेकिन समय बदला। इस बदलते समय में आदमी के भीतर शैतान ने प्रवेश किया। उसके भीतर । बुराइयाँ पनप उठीं।
एक दिन कुछ लोगों ने पेड़ों पर लादकर कुछ सामान ले जाना चाहा। परन्तु उन पर उन्होंने इतना अधिक बोझ लाद दिया कि पेड़ मुश्किल से ही कदम बढ़ा सके। वे बड़ी मुश्किल से डगमगाते हुए चल पा रहे थे।
पेड़ों की उस हालत पर उन लोगों ने उनकी कोई मदद नहीं की। वे उल्टे उनका मजाक उड़ाने लगे।
पेड़ों को बहुत बुरा लगा। वे मनुष्य के ऐसे मित्रताविहीन रवैये से खिन्न हो उठे। वे सोचने लगे कि मनुष्य के हित की इतनी चिन्ता करने और ऐसी सेवा करने का नतीजा उन्हें इस अपमान के रूप में मिल रहा है।
उसी दिन से पेड़ स्थिर हो गए। उन्होंने आदमी की तरह इधर-उधर घूमना और दौड़ना बन्द कर दिया।
अब आदमी को अपनी गलती का अहसास हुआ। वह पेड़ के पास गया और उससे पहले की तरह ही दोस्त बन जाने की प्रार्थना की। लेकिन पेड़ नहीं माने। वे अचल बने रहे।
इस तरह आदमी के भद्दे और अपमानजनक रवैये ने उससे उसका सबसे अच्छा मित्र और मददगार छीन लिया।
प्रस्तुति: बलराम अग्रवाल
मुल्ला नसरुद्दीन बहुत दिन अविवाहित रहा । एक आदमी ने उससे पूछा कि क्या कारण है ? अब काफी समय हो गया । अब तुम खोज ही लो, अन्यथा समय जा रहा है ।
नसरुद्दीन ने कहा, ‘खोज में ही तो लगा हूं। लेकिन मुझे ऐसी स्त्री चाहिए, जो समग्र रूप में पूर्ण हो । सैकड़ों स्त्रियां मिलीं, लेकिन पूर्ण कोई भी नहीं । और जब तक पूर्ण न हो, तब तक मैं प्रेम न होने दूंगा ।’
तो आदमी ने कहा, ‘एक भी स्त्री न मिली तुम्हें जीवन भर की तलाश में ?”
नसरुद्दीन,- ‘नहीं, एक-दो बार मिली भी, लेकिन वह भी पूर्ण पति की तलाश में थीं ।’
एक युगल था, जिनके यहाँ वृद्धावस्था में एक पुत्र का जन्म हुआ। पर वृद्ध को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने बेटे का नाम क्या रखे! तब वह नाम का चयन करने के लिए एक ज्योतिषी के पास गया। यह जानकर कि पुत्र का जन्म वृद्धावस्था में हुआ है, ज्योतिषी ने उसका नाम नोमोल रख दिया। वृद्ध आदमी ने उसे एक शॉल व चाँदी का सिक्का उपहार में दिया। कहीं वह नाम न भूल जाए, इस आशंका से वृद्ध वापस जाते हुए बार-बार ‘नोमोल-नोमोल’ बोलता जा रहा था। रास्ते में ‘नोमोल’ बदलकर ‘नेमेल’ हो गया।
जब वह नदी के तट से गुजरा तो वहाँ एक व्यापारी ने तट पर अपनी नाव बाँध रखी थी। जैसे ही वृद्ध आदमी व्यापारी की नाव के पास पहुँचा, व्यापारी ने नाविक को नाव खोलने का आदेश दिया। नाविक जैसे ही ऐसा करने लगा कि उन्होंने वृद्ध आदमी को ‘नेमेल, नेमेल’ (जिसका अर्थ उनकी भाषा में होता था कि नाव में मत जाओ) बोलते सुना। यह सुन नाविक ने व्यापारी से कहा कि एक वृद्ध आदमी ने हमें नाव के पाल खोलने के लिए मना किया है। व्यापारी ने वृद्ध आदमी को बुलाया और उससे इसकी वजह पूछी। वृद्ध आदमी को लगा कि अगर उसने व्यापारी की बात का जवाब दिया तो हो सकता है कि वह नाम भूल जाए, इसलिए वह लगातार ‘नेमेल-नेमेल’ ही उच्चारता रहा।
व्यापारी ने गुस्से में कहा, “इतने लंबे समय तक यहाँ रहने के बाद मैंने नाविक को नाव खोलने का आदेश दिया, पर न जाने कहाँ से यह बदनसीब आदमी आ गया और मेरी शुभ यात्रा में बाधा डाल रहा है। इसके हाथ इसके पीछे बाँध दो और इसकी खूब पिटाई करो।”
पिटने के बाद वृद्ध आदमी नेमेल भूल गया और उसकी जगह ‘नोहोबोर होल’ बोलता-बोलता चलने लगा (इन शब्दों का अर्थ होता है, छैल-छबीला)। उसी समय एक आदमी खूब सज-धजकर शानदार कपड़े पहने वहाँ से निकला। उसे लगा कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है, क्योंकि उसने बहुत तड़क-भड़क वाले कपड़े पहने हुए थे। यह सोच उसने अपनी छड़ी से उसे खूब मारा।
दर्द से कराहते हुए वृद्ध आदमी ‘नोहोबोर होल’ शब्द भूल गया और रोते-रोते बोलने लगा, ‘सितुतकोई ईतुहे सोरा’ (यानी कि यह दबसरे से कहीं बेहतर है)। उसी समय घैंघा रोग से पीड़ित दो आदमी वहाँ से गुजरे। उन्हें लगा कि वह उनकी बीमारी का मजाक उड़ा रहा है। क्रोधित हो वह उसे तब तक मारते रहे जब तक कि वह जमीन पर गिर न गया। दर्द से कराहता किसी तरह लड़खड़ाता हुआ वह वृद्ध आदमी घर पहुँचा। घर पहुँचकर उसने पत्नी को सारी बात बताई कि उसे कैसे-कैसे संकटों का सामना करना पड़ा। उसने दुःखी होकर कहा,
“ठीक है, जो हुआ सो हुआ। अब मुझे वह नाम बताओ, जो ज्योतिषी ने बताया है।”
वृद्ध आदमी बोला, “बार-बार मुझ पर जो प्रहार हुआ है, उसकी वजह से मैं नाम भूल गया हूँ।”
यह सुन वृद्ध स्त्री बोली, “अगर तुम नाम भूल गए हो तो हम क्या कर सकते हैं? कोई बात नहीं। अब बेटे का नाम रखने की बात हम यहीं खत्म कर देते हैं। अब हमें अपने भूमि के टुकड़े पर खेती करने की बात पर ध्यान देना चाहिए। जाओ और जाकर नोमोलिया (नरम) चावल के पौधे को रोपो।”
‘नोमोलिया’ शब्द सुनते ही वृद्ध आदमी को अपने बेटे का नाम ‘नोमोल’ याद आ गया। तब वह गुस्से से अपनी पत्नी को बोला, “अगर तुम्हें बेटे का नाम पता ही था, तुमने मुझे इतनी यातना और पिटाई सहने पर मजबूर क्यों किया?” यह कहकर वृद्ध आदमी अपनी पत्नी को जोर-जोर से डाँटने लगा। उसका क्रोध उसकी पत्नी ने उससे माफी माँगी और फिर समझाया कि उसे वास्तव में वह नाम नहीं पता था जो ज्योतिषी ने सुझाया था। वृद्ध को भी तब अपनी गलती का अहसास हुआ। वृद्ध युगल ने अपने पुत्र का नाम नोमोल रख दिया और खुशी-खुशी रहने लगे।
(साभार : सुमन वाजपेयी)
राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए।
देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।
आपने जम्मू की वैष्णो माता का नाम अवश्य सुना होगा। आज हम आपको इन्हीं की कहानी सुना रहे हैं, जो बरसों से जम्मू-कश्मीर में सुनी व सुनाई जाती है।
कटरा के करीब हन्साली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहाँ कोई संतान न थी। वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे।
एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में भी उन्हीं के बीच आ बैठीं। अन्य कन्याएँ तो चली गईं किंतु माँ वैष्णों नहीं गईं। बह श्रीधर से बोलीं-
'सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।'
श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहूँचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया।
सभी अतिथि हैरान थे कि आखिर कौन-सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है?
श्रीधर की कुटिया में बहुत-से लोग बैठ गए। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया।
जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुँची तो वह बोले, 'मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।'
'ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता।' कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया।
भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किंतु माता उसकी चाल भाँप गई थीं। वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चलीं।
भैरव ने उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। एक गुफा में माँ शक्ति ने नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहाँ आ पहुँचा। एक साधु ने उससे कहा, 'जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।'
भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दुसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। वह गुफा आज भी गर्भ जून के नाम से जानी जाती है।
देवी ने भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। माँ गुफा के भीतर चली गईं। द्वार पर वीर लंगूर था। उसने भैरव से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा तो माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर दिया।
भैरव का सिर भैरों घाटी में जा गिरा। तब माँ ने उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी।
आज भी प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु माता वैष्णो के दर्शन करने आते हैं। गुफा में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं।
(रचना भोला 'यामिनी')
न साथ तेरा
ये हमेश की दूरी
ख़ामोशी मेरी।
खाली कमरा
साथ-बात अधूरी
मज़बूरी तेरी।
तड़पता मैं
सिसकती रही तू
बेबस हम।
टूटे सपने
आज़ाद हुआ तू
ज़िद्दी ज़िन्दगी।
रिंकी
ओथनिएल। .. शराब और मैं
वैसे। वो ओथनिएल ( मेरे दोस्त का नाम) हमेश शराब में महकता रहता है, पर आज कदम लड़खड़ा रहे है। जो पूछा। की आज उड़ने की तैयारी क्यों है? बोला। अकेले रहने का मन है। शराब लोगो को दूर रखने में मदद करती है। अगर मै पास जाता हूँ तो वो खुद दूर हो जाती है। इसलिए आज खुद की ख़ुशी के लिए।
इतना क्यों पीते हो। होश में रहकर उसके नज़रो में चुभने से अच्छा है , कही बेहोश हो कर कोने में पड़ा रहूँ।
मेरा उसे प्यार करना उसको पसंद नहीं, किसी को परेशान करने से अच्छा है की पीकर बेहोश रहूँ।
ये सब नहीं कर पाते है , प्यार पर हक़ जताते है। .तुमने सिर्फ प्यार किया और उसे जाने दिया "ओथनिएल"
Rinki
वैसे। वो ओथनिएल ( मेरे दोस्त का नाम) हमेश शराब में महकता रहता है, पर आज कदम लड़खड़ा रहे है। जो पूछा। की आज उड़ने की तैयारी क्यों है? बोला। अकेले रहने का मन है। शराब लोगो को दूर रखने में मदद करती है। अगर मै पास जाता हूँ तो वो खुद दूर हो जाती है। इसलिए आज खुद की ख़ुशी के लिए।
इतना क्यों पीते हो। होश में रहकर उसके नज़रो में चुभने से अच्छा है , कही बेहोश हो कर कोने में पड़ा रहूँ।
मेरा उसे प्यार करना उसको पसंद नहीं, किसी को परेशान करने से अच्छा है की पीकर बेहोश रहूँ।
ये सब नहीं कर पाते है , प्यार पर हक़ जताते है। .तुमने सिर्फ प्यार किया और उसे जाने दिया "ओथनिएल"
Rinki
पंजाब की चनाब नदी के तट पर तुला को एक बेटी हुई सोहनी। कुम्हार की बेटी सोहनी की खूबसूरती की क्या बात थी। उसका नाम भी सोहनी था और रूप भी सुहाना था। उसी के साथ एक मुगल व्यापारी के यहां जन्म लिया इज्जत बेग ने जो आगे जाकर महीवाल कहलाया। इन दोनों के इश्क के किस्से पंजाब ही नहीं सारी दुनिया में मशहूर हैं।
लोहड़ी का संबंध सुंदरी नामक एक कन्या तथा दुल्ला भट्टी नामक एक योद्धा से जोड़ा जाता है। इस संबंध में प्रचलित ऐतिहासिक कथा के अनुसार, गंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सुंदरी नामक एक कन्या थी जो अपने नाम की भांति बहुत सुंदर थी। वह इतनी रूपवान थी कि उसके रूप, यौवन व सौंदर्य की चर्चा गली-गली में होने लगी थी। धीरे-धीरे उसकी सुंदरता के चर्चे उड़ते-उड़ते गंजीबार के राजा तक पहुंचे। राजा उसकी सुंदरता का बखान सुनकर सुंदरी पर मोहित हो गया और उसने सुंदरी को अपने हरम की शोभा बनाने का निश्चय किया।
बहुत पहले भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक गांव था मिसमा। वहां एक अनाथ मछुआरा रहता था ताराओन । एक दिन वह मछली पकड़ने गया । उस दिन मछली के स्थान पर एक नाग उसके जाल में फंस गया । दरअसल, वह नाग, नागलोक का राजा था | अपने पिता को जाल में फंसा देखकर नागकन्या घबराई। उसने सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर लिया । वह ताराओन के पास पहुंचकर बोली-“यदि तुम मेरे पिताजी को छोड़ दोगे तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगी ।”
॥ कहानी॥
पुराने समय में निकाबार द्वीप पूरी तरह घने जंगल से घिरा था ।
आदमी नाम की कोई चीज वहाँ नहीं थी ।
कहा जाता है कि पूरब दिशा के किसी देश की एक राजकुमारी अपने एक दास से प्यार करती थी । उस दास से राजकुमारी को गर्भ ठहर गया ।
यह खबर जब राजा के कानों में पड़ी तो वह विचलित हो उठा ।
उसके क्रोध का ठिकाना न रहा । उसने उस दास को मृत्युदंड सुनाकर मर॒वा दिया । गर्भवती होने के कारण राजकुमारी को उसने मृत्युदंड तो नहीं दिया परन्तु एक बड़े बक्से में उसे जीवित बन्द करके समुद्र में फिकवा दिया। वह बक्सा कई माह तक समुद्र की लहरों के थपेड़े खा- खाकर पानी में भटकता रहा ।
सौभाग्य से एक सुबह, अध्दमृत हो चुकी राजकुमारी वाला वह बड़ा बक्सा एक द्वीप के किनारे पर आ टिका। यह कोई और नहीं, कार-निकोबार द्वीप था। निश्चित समय पर राजकुमारी ने एक बेटे को जन्म दिया । बड़ा होकर वह एक सुन्दर और ताकतवर नौजवान बना । आज की निकोबारी जनजाति उस नौजवान की ही संतति है ।
॥ कहानी॥
पुराने समय में पानी का एक जहाज निकोबार द्वीप के पास से होकर गुजर रहा था ।
अचानक बड़ा भयानक समुद्री तूफान उठ आया । तूफानी लहरों ने उस जलयान को हल्के पत्ते की तरह किनारे की एक चट्टान पर दे मारा ।
जलयान चकनाचूर हो गया और डूब गया। उसमें सवार स्त्री-पुरुष पानी में इधर-उधर बिखर गए ।
उनमें से कुछ तैरकर और कुछ लहरों द्वारा फेंक दिए जाने के कारण किनारे पर आ लगे । द्वीप से बाहर जाने का कोई साधन उन बचे हुए लोगों के पास नहीं बचा था ।
उन्होंने अपने आप को भाग्य के हवाले कर दिया और पूरी तरह वहीं पर निवास करने लगे ।
कहा जाता है कि वर्तमान निकोबारी आदिम जनजाति के पूर्वज यही लोग थे।जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...