Tuesday, August 16, 2022

बेटा, जो देर से पैदा हुआ : असमिया लोक-कथा

 

बेटा, जो देर से पैदा हुआ : असमिया लोक-कथा

एक युगल था, जिनके यहाँ वृद्धावस्था में एक पुत्र का जन्म हुआ। पर वृद्ध को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने बेटे का नाम क्या रखे! तब वह नाम का चयन करने के लिए एक ज्योतिषी के पास गया। यह जानकर कि पुत्र का जन्म वृद्धावस्था में हुआ है, ज्योतिषी ने उसका नाम नोमोल रख दिया। वृद्ध आदमी ने उसे एक शॉल व चाँदी का सिक्का उपहार में दिया। कहीं वह नाम न भूल जाए, इस आशंका से वृद्ध वापस जाते हुए बार-बार ‘नोमोल-नोमोल’ बोलता जा रहा था। रास्ते में ‘नोमोल’ बदलकर ‘नेमेल’ हो गया।

जब वह नदी के तट से गुजरा तो वहाँ एक व्यापारी ने तट पर अपनी नाव बाँध रखी थी। जैसे ही वृद्ध आदमी व्यापारी की नाव के पास पहुँचा, व्यापारी ने नाविक को नाव खोलने का आदेश दिया। नाविक जैसे ही ऐसा करने लगा कि उन्होंने वृद्ध आदमी को ‘नेमेल, नेमेल’ (जिसका अर्थ उनकी भाषा में होता था कि नाव में मत जाओ) बोलते सुना। यह सुन नाविक ने व्यापारी से कहा कि एक वृद्ध आदमी ने हमें नाव के पाल खोलने के लिए मना किया है। व्यापारी ने वृद्ध आदमी को बुलाया और उससे इसकी वजह पूछी। वृद्ध आदमी को लगा कि अगर उसने व्यापारी की बात का जवाब दिया तो हो सकता है कि वह नाम भूल जाए, इसलिए वह लगातार ‘नेमेल-नेमेल’ ही उच्चारता रहा।

व्यापारी ने गुस्से में कहा, “इतने लंबे समय तक यहाँ रहने के बाद मैंने नाविक को नाव खोलने का आदेश दिया, पर न जाने कहाँ से यह बदनसीब आदमी आ गया और मेरी शुभ यात्रा में बाधा डाल रहा है। इसके हाथ इसके पीछे बाँध दो और इसकी खूब पिटाई करो।”

पिटने के बाद वृद्ध आदमी नेमेल भूल गया और उसकी जगह ‘नोहोबोर होल’ बोलता-बोलता चलने लगा (इन शब्दों का अर्थ होता है, छैल-छबीला)। उसी समय एक आदमी खूब सज-धजकर शानदार कपड़े पहने वहाँ से निकला। उसे लगा कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है, क्योंकि उसने बहुत तड़क-भड़क वाले कपड़े पहने हुए थे। यह सोच उसने अपनी छड़ी से उसे खूब मारा।

दर्द से कराहते हुए वृद्ध आदमी ‘नोहोबोर होल’ शब्द भूल गया और रोते-रोते बोलने लगा, ‘सितुतकोई ईतुहे सोरा’ (यानी कि यह दबसरे से कहीं बेहतर है)। उसी समय घैंघा रोग से पीड़ित दो आदमी वहाँ से गुजरे। उन्हें लगा कि वह उनकी बीमारी का मजाक उड़ा रहा है। क्रोधित हो वह उसे तब तक मारते रहे जब तक कि वह जमीन पर गिर न गया। दर्द से कराहता किसी तरह लड़खड़ाता हुआ वह वृद्ध आदमी घर पहुँचा। घर पहुँचकर उसने पत्नी को सारी बात बताई कि उसे कैसे-कैसे संकटों का सामना करना पड़ा। उसने दुःखी होकर कहा,

“ठीक है, जो हुआ सो हुआ। अब मुझे वह नाम बताओ, जो ज्योतिषी ने बताया है।”

वृद्ध आदमी बोला, “बार-बार मुझ पर जो प्रहार हुआ है, उसकी वजह से मैं नाम भूल गया हूँ।”

यह सुन वृद्ध स्त्री बोली, “अगर तुम नाम भूल गए हो तो हम क्या कर सकते हैं? कोई बात नहीं। अब बेटे का नाम रखने की बात हम यहीं खत्म कर देते हैं। अब हमें अपने भूमि के टुकड़े पर खेती करने की बात पर ध्यान देना चाहिए। जाओ और जाकर नोमोलिया (नरम) चावल के पौधे को रोपो।”

‘नोमोलिया’ शब्द सुनते ही वृद्ध आदमी को अपने बेटे का नाम ‘नोमोल’ याद आ गया। तब वह गुस्से से अपनी पत्नी को बोला, “अगर तुम्हें बेटे का नाम पता ही था, तुमने मुझे इतनी यातना और पिटाई सहने पर मजबूर क्यों किया?” यह कहकर वृद्ध आदमी अपनी पत्नी को जोर-जोर से डाँटने लगा। उसका क्रोध उसकी पत्नी ने उससे माफी माँगी और फिर समझाया कि उसे वास्तव में वह नाम नहीं पता था जो ज्योतिषी ने सुझाया था। वृद्ध को भी तब अपनी गलती का अहसास हुआ। वृद्ध युगल ने अपने पुत्र का नाम नोमोल रख दिया और खुशी-खुशी रहने लगे।

(साभार : सुमन वाजपेयी)

6 comments:

  1. बेहतरीन, ठीक इसी तरह की कथा हिंदी और मारवाड़ी में भी है ये मार खाकर नाम भूलना और अंत में वैसा ही शब्द मिल जाना।
    रोचक कथा।

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  2. लोककथा , एक दूसरे से मिलती-जुलती है।

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