ये ग़म क्या दिल की आदत है? नही तो,
किसी से कुछ शिकायत है? नही तो
Everyone does have a book in them. Here is few pages of my life, read it through by my stories,poetry and articles.
Sunday, December 17, 2023
ये ग़म क्या दिल की आदत है? नही तो -Jaun Elia
Wednesday, November 22, 2023
ठाकुर का कुआँ - Om Prakash Valmiki
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब कीतालाब ठाकुर का ।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का ।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की ।
कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ?
Tuesday, August 22, 2023
अगर तुम न होते
अगर तुम न होते
कितनी उदास होती ये ज़िंदगी कितना बेरंग होता ये हर दिन कितना खाली होता ये दिल अगर तुम न होते कितना मुश्किल होता ये जीना कितना अकेला होता ये सफर कितना डर लगता होता ये हर कदम पर अगर तुम न होते कितनी बेमतलब होती ये दुनिया कितना नीरस होता ये जीवन कितना अधूरा होता ये प्यार तुम हो ना इसलिए ये ज़िंदगी है सार्थक ये हर दिन है रंगीन ये दिल है भरा है प्यार से तुम हो ना इसलिए ये दुनिया है सुंदर ये जीवन है खुशनुमा ये प्यार है बेमिसालMonday, June 26, 2023
Sneaky Strategies Employers Employ to Dodge Salary Increases
The word salary increment rejuvenates my mind and fills it with dopamine whenever I hear it. Dopamine is scientifically known as the "feel good" hormone. It is a neurotransmitter part of the brain's reward system. The increase in salary gives the same feeling as dopamine. I worked day and night to get the performance reward in real monetary form, to increase my purchasing power in the market.
My life is subject to the global
market prices; the market is a complex system that affects my life in many
ways. It determines the prices of goods and services, which affects my
ability to afford them. It started with my birth and will end after my death.
I work in a sector where human welfare is considered a primary
goal of the business. When it comes to employee welfare, the company/organization
acts in the same way as their partner (another company). Employees come last on
the list of company priorities. Salary increment is not clearly defined under
the “Minimum Wages Act” in India. Thus, the "Game of Thorns" strategy
favors the employers. In order not to increase employee salaries, employers put
their soul into this endeavor.
Employers can play unfair games with workers classified as
laborers in many ways.
·
As a performance reward, an employer may offer a
one-time reward once a year, but it is not an increment; the one-time reward
won't be included in the CTC, which means CTC will remain as it was the
previous year.
·
A variety of insurance options, food coupons,
and transport facilities will be added to CTC. Despite the fact that these are
all employer-provided benefits, they are not cash payments. They are often
added to the CTC to appear as if the employee is earning a higher salary.
·
Putting a large chunk of variable component into
CTC. In performance-based sectors, this is a common tactic. The employer will
offer a high CTC, but a large portion of it will be variable.
·
Employer
keeps changing performance review criteria to make it harder for employees to
earn salary increases.
·
Employers
create a culture of fear in the workplace where employees are afraid to ask for
raises.
If employers don't make real salary increases, what impact does
that have on worker life?
As the basic salary remains the same as before, no changes are
made to the monthly salary, which will adversely impact any individual. The EPF
contribution will remain the same, it will also affect gratuity calculation.
And the salary will not be able to keep up with inflation. Low or no salary
increment lowers the salary's purchasing power. Negotiation power on the job
market is also directly affected.
To conclude, it is important for a company or organization to be
sensitive to its employees' children and families. We are also part of society
as a whole.
Rinki
Saturday, May 27, 2023
आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे- Suraj-Sanim
आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे
मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगें मैँ भटकता ही रहा दर्द के वीराने में वक़्त लिखता रहा चेहरे पे हर पल का हिसाब मेरी शोहरत मेरी दीवानगी की नज़र हुई पी गई मय की बोतल मेरे गीतोँ की किताब आज लौटा हूँ तो हँसने की अदा भूल गया ये शहर भूला मुझे मैँ भी इसे भूल गया मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगें आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे मेरा फ़न फिर मुझे बाज़ार में ले आया है ये वो जा है कि जहाँ मह्र-ओ-वफ़ा बिकते हैँ बाप बिकते हैँ और लख़्त-ए-जिगर बिकते हैँ कोख बिकती है दिल बिकते हैँ सर बिकते हैँ इस बदलती हुई दुनिया का ख़ुदा कोई नहीँ सस्ते दामोँ में हर रोज़ ख़ुदा बिकते हैँ मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगे आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे हर ख़रीदार को बाज़ार में बिकता पाया हम क्या पायेंगे किसी ने यहाँ क्या पाया मेरे एहसास मेरे फूल कहीँ और चलेँ बोल पूजा मेरी बच्ची कहीँ और चलेँ, और चलेँ, और चलेँ
Monday, May 22, 2023
Wednesday, May 10, 2023
समुदाय में शांति
समुदाय में शांति को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयास और विभिन्न हितधारकों की भागीदारी की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ कदम हैं जो एक समुदाय में शांति को बढ़ावा देने में योगदान कर सकते हैं:
संचार और संवाद: समुदाय के सदस्यों के बीच खुले और सम्मानपूर्ण संचार को प्रोत्साहित करें। विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच संवाद और समझ को सुविधाजनक बनाने के लिए मंचों, टाउन हॉल बैठकों या सामुदायिक समारोहों का आयोजन करें।
संघर्ष समाधान और मध्यस्थता: संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए तंत्र स्थापित करें। संघर्ष समाधान तकनीकों और मध्यस्थता कौशल में समुदाय के सदस्यों को प्रशिक्षित करें। असहमति और विवादों को दूर करने के लिए बातचीत, संवाद और समझौते के उपयोग को प्रोत्साहित करें।
शिक्षा और जागरूकता: सहानुभूति, समझ और सहिष्णुता पर ध्यान केंद्रित करने वाले शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा दें। अपने पाठ्यक्रम या गतिविधियों में शांति शिक्षा को शामिल करने के लिए स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों और स्थानीय संगठनों को प्रोत्साहित करें।
समावेश और विविधता को बढ़ावा दें: विविधता को अपनाएं और सुनिश्चित करें कि समुदाय के सभी सदस्य शामिल और मूल्यवान महसूस करें। सामुदायिक कार्यक्रमों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विभिन्न सांस्कृतिक, जातीय और सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से भागीदारी को प्रोत्साहित करें।
मूल कारणों का पता लगाएं: समुदाय में संघर्ष और हिंसा के अंतर्निहित कारणों की पहचान करें और उनका समाधान करें। इसमें गरीबी, असमानता, भेदभाव, संसाधनों की कमी या सामाजिक विभाजन जैसे मुद्दों को संबोधित करना शामिल हो सकता है। सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के अवसर पैदा करने की दिशा में काम करें।
सहयोग और साझेदारी: सामुदायिक संगठनों, स्थानीय सरकार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, स्कूलों और धार्मिक संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना। शांति, सुरक्षा और भलाई के सामान्य लक्ष्यों की दिशा में काम करने वाली साझेदारी स्थापित करें।
अधिकारिता और नेतृत्व विकास: शांति को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए समुदाय के सदस्यों, विशेष रूप से युवाओं को प्रोत्साहित करें। नेतृत्व विकास, सलाह और नागरिक जुड़ाव के अवसर प्रदान करें। अपने समुदाय के भीतर सकारात्मक परिवर्तन के एजेंट बनने के लिए व्यक्तियों को सशक्त बनाना।
याद रखें कि शांति को बढ़ावा देना एक सतत प्रक्रिया है जिसके लिए समुदाय के भीतर व्यक्तियों और संस्थानों से दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होती है।
Tuesday, April 25, 2023
रूमी-यहाँ आत्मा का समुदाय है।
यहाँ आत्मा का समुदाय है।
और शोर में भी चुप
होना।
अपने सभी जुनून पी लो,
और बदनाम हो।
दोनों आंखें बंद कर लें
दूसरी आँख से देखना।
अपने हाथ खोलो,
यदि आप शामिल होना चाहते हैं।
इस घेरे में बैठ जाओ।
एक भेड़िये की तरह अभिनय करना छोड़ो,
और महसूस करो
चरवाहे का प्यार आपको भरता है।
रात में, आपका प्रिय भटकता है।
सांत्वना स्वीकार नहीं करते।
प्रेमी के मुंह में स्वाद चखो।
तुम विलाप करते हैं,
"उसने मुझे छोड़ दिया।" "उसने मुझे छोड़ दिया।"
बीस और आएंगे।
चिंता से खाली रहो,
सोचो किसने सोचा!
आप जेल में क्यों रहते हैं
जब दरवाजा इतना खुला है?
मौन में रहो ।
रूमी।
Monday, April 24, 2023
Tuesday, April 18, 2023
यमराज और नचिकेता
आज हम जानेंगे यमराज और नचिकेता से जुड़े प्रसंग को और उनके बीच हुए संवाद को!!!!!!
हमारे धर्म ग्रंथो में मृत्यु के देव यमराज से जुड़े दो ऐसे प्रसंग आते है जब यमराज को इंसान के हठ के आगे मजबूर होना पड़ा था।
पहला प्रसंग सावित्री से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को सावित्री के हठ पर मजबूर होकर उसके पति सत्यवान को पुनः जीवित करना पड़ा। जबकि दूसरा प्रसंग एक बालक नचिकेता से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को एक बालक की जिद के आगे मजबूर होकर उसे मृत्यु से जुड़े गूढ़ रहस्य बताने पढ़े। हम आपको यमराज और सावित्री के प्रसंग के बारे में पहले बता चुके है।
इस प्रसंग का वर्णन हिन्दू धर्मग्रन्थ कठोपनिषद में मिलता है। इसके अनुसार नचिकेता वाजश्रवस (उद्दालक) ऋषि के पुत्र थे। एक बार उन्होंने विश्वजीत नामक ऐसा यज्ञ किया, जिसमें सब कुछ दान कर दिया जाता है। दान के वक्त नचिकेता यह देखकर बेचैन हुआ कि उनके पिता स्वस्थ गायों के बजाए कमजोर, बीमार गाएं दान कर रहें हैं। नचिकेता धार्मिक प्रवृत्ति का और बुद्धिमान था, वह तुरंत समझ गया कि मोह के कारण ही पिता ऐसा कर रहे हैं।
पिता के मोह को दूर करने के लिए नचिकेता ने पिता से सवाल किया कि वे अपने पुत्र को किसे दान देंगे। उद्दालक ऋषि ने इस सवाल को टाला, लेकिन नचिकेता ने फिर यही प्रश्न पूछा। बार-बार यही पूछने पर ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने कह दिया कि तुझे मृत्यु (यमराज) को दान करुंगा। पिता के वाक्य से नचिकेता को दु:ख हुआ, लेकिन सत्य की रक्षा के लिए नचिकेता ने मृत्यु को दान करने का संकल्प भी पिता से पूरा करवा लिया। तब नचिकेता यमराज को खोजते हुए यमलोक पहुंच गया।
यम के दरवाजे पर पहुंचने पर नचिकेता को पता चला कि यमराज वहां नहीं है, फिर भी उसने हार नहीं मानी और तीन दिन तक वहीं पर बिना खाए-पिए बैठा रहा। यम ने लौटने पर द्वारपाल से नचिकेता के बारे में जाना तो बालक की पितृभक्ति और कठोर संकल्प से वे बहुत खुश हुए। यमराज ने नचिकेता की पिता की आज्ञा के पालन और तीन दिन तक कठोर प्रण करने के लिए तीन वर मांगने के लिए कहा।
तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह मांगा। दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में था। तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था। यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया, लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था। अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया। अंत में विवश होकर यमराज ने जन्म-मृत्यु से जुड़े रहस्य बताए।
आइए अब हम जानते है की नचिकेता ने यमराज से क्या सवाल किये और यमराज ने उनका क्या उत्तर दिया।
यमराज-नचिकेता संवाद :-
किस तरह शरीर से होता है ब्रह्म का ज्ञान व दर्शन?
मनुष्य शरीर दो आंखं, दो कान, दो नाक के छिद्र, एक मुंह, ब्रह्मरन्ध्र, नाभि, गुदा और शिश्न के रूप में 11 दरवाजों वाले नगर की तरह है, जो ब्रह्म की नगरी ही है। वे मनुष्य के हृदय में रहते हैं। इस रहस्य को समझकर जो मनुष्य ध्यान और चिंतन करता है, उसे किसी प्रकार का दुख नहीं होता है। ऐसा ध्यान और चिंतन करने वाले लोग मृत्यु के बाद जन्म-मृत्यु के बंधन से भी मुक्त हो जाता है।
क्या आत्मा मरती या मारती है?
जो लोग आत्मा को मारने वाला या मरने वाला मानते हैं, वे असल में आत्मा को नहीं जानते और भटके हुए हैं। उनकी बातों को नजरअंदाज करना चाहिए, क्योंकि आत्मा न मरती है, न किसी को मार सकती है।
कैसे हृदय में माना जाता है परमात्मा का वास?
मनुष्य का हृदय ब्रह्म को पाने का स्थान माना जाता है। यमदेव ने बताया मनुष्य ही परमात्मा को पाने का अधिकारी माना गया है। उसका हृदय अंगूठे की माप का होता है। इसलिए इसके अनुसार ही ब्रह्म को अंगूठे के आकार का पुकारा गया है और अपने हृदय में भगवान का वास मानने वाला व्यक्ति यह मानता है कि दूसरों के हृदय में भी ब्रह्म इसी तरह विराजमान है। इसलिए दूसरों की बुराई या घृणा से दूर रहना चाहिए।
क्या है आत्मा का स्वरूप?
यमदेव के अनुसार शरीर के नाश होने के साथ जीवात्मा का नाश नहीं होता। आत्मा का भोग-विलास, नाशवान, अनित्य और जड़ शरीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह अनन्त, अनादि और दोष रहित है। इसका कोई कारण है, न कोई कार्य यानी इसका न जन्म होता है, न मरती है।
यदि कोई व्यक्ति आत्मा-परमात्मा के ज्ञान को नहीं जानता है तो उसे कैसे फल भोगना पड़ते हैं?
जिस तरह बारिश का पानी एक ही होता है, लेकिन ऊंचे पहाड़ों पर बरसने से वह एक जगह नहीं रुकता और नीचे की ओर बहता है, कई प्रकार के रंग-रूप और गंध में बदलता है। उसी प्रकार एक ही परमात्मा से जन्म लेने वाले देव, असुर और मनुष्य भी भगवान को अलग-अलग मानते हैं और अलग मानकर ही पूजा करते हैं। बारिश के जल की तरह ही सुर-असुर कई योनियों में भटकते रहते हैं।
कैसा है ब्रह्म का स्वरूप और वे कहां और कैसे प्रकट होते हैं?
ब्रह्म प्राकृतिक गुणों से एकदम अलग हैं, वे स्वयं प्रकट होने वाले देवता हैं। इनका नाम वसु है। वे ही मेहमान बनकर हमारे घरों में आते हैं। यज्ञ में पवित्र अग्रि और उसमें आहुति देने वाले भी वसु देवता ही होते हैं। इसी तरह सभी मनुष्यों, श्रेष्ठ देवताओं, पितरों, आकाश और सत्य में स्थित होते हैं। जल में मछली हो या शंख, पृथ्वी पर पेड़-पौधे, अंकुर, अनाज, औषधि हो या पर्वतों में नदी, झरने और यज्ञ फल के तौर पर भी ब्रह्म ही प्रकट होते हैं। इस प्रकार ब्रह्म प्रत्यक्ष देव हैं।
आत्मा निकलने के बाद शरीर में क्या रह जाता है?
जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो उसके साथ प्राण और इन्द्रिय ज्ञान भी निकल जाता है। मृत शरीर में क्या बाकी रहता है, यह नजर तो कुछ नहीं आता, लेकिन वह परब्रह्म उस शरीर में रह जाता है, जो हर चेतन और जड़ प्राणी में विद्यमान हैं।
मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं?
यमदेव के अनुसार अच्छे और बुरे कामों और शास्त्र, गुरु, संगति, शिक्षा और व्यापार के माध्यम से देखी-सुनी बातों के आधार पर पाप-पुण्य होते हैं। इनके आधार पर ही आत्मा मनुष्य या पशु के रूप में नया जन्म प्राप्त करती है। जो लोग बहुत ज्यादा पाप करते हैं, वे मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त अन्य योनियों में जन्म पाते हैं। अन्य योनियां जैसे पेड़-पौध, पहाड़, तिनके आदि।
क्या है आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरूप?
मृत्यु से जुड़े रहस्यों को जानने की शुरुआत बालक नचिकेता ने यमदेव से धर्म-अधर्म से संबंध रहित, कार्य-कारण रूप प्रकृति, भूत, भविष्य और वर्तमान से परे परमात्म तत्व के बारे में जिज्ञासा कर की।
यमदेव ने नचिकेता को ‘ऊँ’ को प्रतीक रूप में परब्रह्म का स्वरूप बताया। उन्होंने बताया कि अविनाशी प्रणव यानी ऊंकार ही परमात्मा का स्वरूप है। ऊंकार ही परमात्मा को पाने के सभी आश्रयों में सबसे सर्वश्रेष्ठ और अंतिम माध्यम है। सारे वेद कई तरह के छन्दों व मंत्रों में यही रहस्य बताए गए हैं। जगत में परमात्मा के इस नाम व स्वरूप की शरण लेना ही सबसे बेहतर उपाय है।
Wednesday, April 12, 2023
Dr. Rahat Indori shayari
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
असली परछाई
जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...
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तूने खूब रचा भगवान् खिलौना माटी का इसे कोई ना सका पहचान खिलौना माटी का वाह रे तेरा इंसान विधाता इसका भेद समझ में ना आता धरती से है इसका ना...
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तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ समझ न इनको वस्त्र तू ये बेड़ियां प...
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मेरे सपनो को जानने का हक रे क्यों सदियों से टूट रही है इनको सजने का नाम नहीं मेरे हाथों को जानने का हक रे क्यों बरसों से खली पड़ी हैं इन्हें...