जो मैं आज हूँ,
पहले से कहीं बेहतर हूँ।
कठिन और कठोर सा लगता हूँ,पर ये सफर आसान न था।
पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा,
वक़्त की धूल ने इसे ऐसा बना दिया।
तुझे मै पागल सा दिखता हूँ
वो तेरी समझ और नज़र है
मैं खुद को जोड़ और तोड़ रहा हूँ
तूने मुझे, टूटा और बिखरा नहीं देखा,
हर चोट, हर ग़म मैंने खुद सहा।
तेरी नज़रों में मैं अकेला और बेफिक्र हूँ,
अतीत का हर जख्म मैंने खुद सहा।
जो मैं आज हूँ, वो खुद की ताकत का निशान है,
गुज़रे दर्द का, और खुद पर किए अहसान का बयान है।
अगर समझ सके तू इन आँखों की गहराई,
शायद तुझे दिखेगा मेरा सच्चा साया,
और
असली परछाई।
Rinki
सुंदर रचना
ReplyDeleteOnkar, Thanks
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteHarish, thanks
DeleteHarish, Thanks
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteSushil Ji, Thanks
Deleteदर्द से गुजर कर ही बीज वृक्ष बनता है, तप कर ही सोना कुंदन
ReplyDeleteAnita Ji, Thanks
Deletesundar aur satik
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