Friday, November 8, 2024

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ,

पहले से कहीं बेहतर हूँ।

कठिन और कठोर सा लगता हूँ,

पर ये सफर आसान न था।


पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा,

वक़्त की धूल ने इसे ऐसा बना दिया।

तुझे मै पागल सा दिखता हूँ 

वो तेरी समझ और नज़र है 

 मैं खुद को जोड़ और तोड़ रहा  हूँ  



तूने मुझे, टूटा और बिखरा नहीं देखा,

हर चोट, हर ग़म मैंने खुद सहा।

तेरी नज़रों में मैं अकेला और बेफिक्र हूँ,

अतीत का हर जख्म मैंने खुद सहा।


जो मैं आज हूँ, वो खुद की ताकत का निशान है,

गुज़रे दर्द का, और खुद पर किए अहसान का बयान है।

अगर समझ सके तू इन आँखों की गहराई,

शायद तुझे दिखेगा मेरा सच्चा साया,

और
असली परछाई।


Rinki

Wednesday, July 31, 2024

राम नाम

 दोहे -


जीवन होगा दर्द मे , जब तक संकट काल।
संगत सच्ची सार है, विपदा गहरी टाल ।।१

बढी होड यश नाम की,मोल मिले है आज।
झूठा भी सांचा लगे , बहुमत बिकता ताज ।२

बेजोड़ हुऐ लोग थे , मीरां सह रैदास ।
बेबूझ नशा दिव्यता,रंगे थे विश्वास ।।३

तेरा मेरा बित रहा , शिथिल तरंग विचार ।
राम नाम मन भरा, अटका भीतर पार ।।४

कैसा मानव लोभ है, भरा सदा अंबार ।
रात दिवा पहरा लगा, भूला रस संसार ।।५

गर्ग विज्ञ!

उदासी के दरख़्तों पर हवा पत्तों पे ठहरी थी

 उदासी के दरख़्तों पर हवा पत्तों पे ठहरी थी

मगर इक रोशनी बच्चों की मुस्कानों पे ठहरी थी

हमें मझधार में फिर से बहा कर ले गया दरिया
हमारे घर की पुख़्ता नींव सैलाबों पे ठहरी थी

ज़रा से ज़लज़ले से टिक नहीं पाये ज़मीं पर हम
हमारी शख़्सियत कमज़़ोर दीवारों पे ठहरी थी

यहाँ ख़ामोशियों ने शोर को बहरा बना डाला
हमारी ज़िन्दगी किन तल्ख़ आवाज़ों पे ठहरी थी

छलक कर चंद बूँदें आ गिरीं ख़्वाबों के दरिया से
कोई तस्वीर भीगी-सी मेरी पलकों पे ठहरी थी

Unknown

Thursday, July 25, 2024

प्रेम का मार्ग- Rumi

 प्रेम का मार्ग कोई सूक्ष्म तर्क नहीं है;

वहाँ का द्वार विनाश है;

पक्षी अपनी स्वतंत्रता के लिए आकाश में बड़े-बड़े चक्कर लगाते हैं,

वे यह कैसे सीखते हैं?

वे गिरते हैं, और गिरते हुए, वो अपने पंख खो देते हैं।

तुमने मुझे इतना विचलित कर दिया, 

तुम्हारी अनुपस्थिति मेरे प्रेम को बढ़ाती है।

मत पूछो कैसे, फिर तुम पास आओ;


 मैं कहता हूँ, और तुम उत्तर मत दो,

मत पूछो कि यह मुझे क्यों प्रसन्न करता है।

तारे पूरी रात भोर तक जलते रहते है। 

मै भी उनके तरह जल रहा हूँ। 


तुम झरना हो,

मै सूखा हूँ, बेजान रेत जैसा 



तुम आवाज़ हो,

मै गूंज  हूँ ।

तुम अब बुला रहे हो,

और मै खत्म हो  चूका हूँ। 

Wednesday, July 24, 2024

आप जेल में क्यों रहते हैं- रूमी

 


यहाँ आत्मा का समुदाय है।

इसमें शामिल हों, और आनंद महसूस करें

अपने सभी जुनून पी लो,

और बदनाम हो।

 

दोनों आंखें बंद कर लें

दूसरी आँख से देखना।

 

रात में, आपका प्रिय भटकता है।

सांत्वना स्वीकार नहीं करते।

तुम  विलाप करते हैं, "उसने मुझे छोड़ दिया।" "उसने मुझे छोड़ दिया।"

बीस और आएंगे।

 

चिंता से खाली रहो,

सोचो किसने सोचा!

 

आप जेल में क्यों रहते हैं

जब दरवाजा इतना खुला है?

 

भय-सोच की उलझन से बाहर निकलो।

मौन में रहो ।

 

 

 

रूमी।

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...