Everyone does have a book in them. Here is few pages of my life, read it through by my stories,poetry and articles.
Sunday, September 8, 2013
अपनी ही बगिया में छाव को तरसता बागवान
स्वतंत्रता दिवस के उत्सव की छठा देखेने की लिए मैं अपने गाँव को चल पड़ा अपने बचपन की स्मृतियों को टटोलने लगा की कैसे १५ अगस्त से हफ्तों पहले से ही बच्चे आज़ादी की गीत गाना शुरु कर देते थे स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम की तैयरी शुरु हो जाया करती थी बच्चे बहुत उत्साहित रहते थे,बच्पन की मीठी यादो में खोया ही था की सामने गाँव के मुखिया जी दिख गए,बात दुया राम सलाम से शुरु हुई,वो बड़ी गंभीर मुद्रा में दिखाई दे रहे थे मैंने पूछा क्या बात है? “समाज का रंग –ढंग खराब होते जा रहा है मुझे इस का कोई हल समझ नहीं आता कहा कर वो चुप हो गए.उनकी बात तो मेरी समझ में आयी पर उसका मतलब समझ ने के लिए मैंने उनसे पूछा कुछ हुआ है क्या ? आज के दिन बहुत उदास दिखाई दे रहे है .
उन्होंने कहा –अब क्या बताऊ आप को,अंग्रेज देश छोड़ गए पर अपने मन का कपट –छल यही छोड़ गए है पता नहीं क्या हो गया है आज़ादी का क्या मतलब किसी के साथ कुछ भी कर सकते है क्या? आज के बेटा-बहु बुजुग माँ-बाप को देखना ही नहीं चाहते,बेचारे दीवाकर जी आखिर कर जुर्म से तंग आकर दम तोड़ दिए.
मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए खुद भी पास वाली कुर्सी पर बैठ गए,मैंने गंभीर होते हुए पूछा कौन है दिवाकर जी ? उन्होंने एक गहरी सी साँस लेकर कहा बड़े भले व्यक्ति थे शरीर से तंदरुस्त मिजाज़ से खुश साथ में मेहनती भी थे खेती बड़ी के साथ दुकान भी चलाते थे, बीवी का स्वर्गवास हुए अरसा हो गया था दोनों बेटे के सहारे जीवन चला रहे थे जब तक शारीर ने साथ दिया खेती की देखभाल किया उन्होंने उसके बाद बस दुकान में बैठने लगे,
बड़ा लड़का और बहु स्कूल में टीचर है एक पोता भी है और छोटा दिल्ली में काम करता है पूरी तरह से संपन्न परिवार था
एक दिन दिवाकर जी मेरे पास आये उदास मन से कहने लगे बेटे ने जीना मुश्किल कर दिया है रोज़ पैसे के लिए गली –गलोज करता है मेरे शारीर अब काम नहीं करता खान-पीना का भी ठिकाना नहीं क्या करू?
मुखिया जी ने आगे की बात सुनाई- हमने उनसे कहा की ये तो हर घर की कहानी है अब आप का शारीर कमज़ोर हो गया है बेटे से लड़ाई करके क्या मिलेगा अब जैसा है आप को इसी के साथ रहना है तो थोड़ा सहन करना पड़ेगा इसके बाद दिवाकर जी चले गए ..
ठीक दस दिन बाद दिवाकर जी रोते हुए हमारे पास आये आते ही बोले हमको मार पिट के हमारे हस्ताक्षर कराकर बैंक से पचास हज़ार रूपया निकल लिया है बेटा –बहु ने दोनों मिलकर हमको पीता है तुम ही फैसला करो
मेरे बुढ़ापे का सहारा छीन लिया ....दिवाकर जी बात सुन कर मैं कुछ पंचो के साथ उनके घर गया पूछने पर बेटे ने कहा पिता जी पैसे नहीं दे रहे थे मुझे जरुरी काम था,ये अब रुपयों का क्या करेगे सब तो हम बच्चो का है पर मागने पर नहीं देते इसलिए ज़बरदस्ती करनी पड़ी.
सबकी बात सुन कर हम पंचो ने निर्णय लिया की आगे से दीवाकर जी का परिवार उनकी देख-भाल सही ढंग से करेगा कोई शिकायत होने पर कारवाही होगी इसके बाद महीने दो महीने सब ठीक रहा एक दिन दोपहर के समय दिवाकर जी अधमरे हालत में मेरे घर आये और घर के बरांडे में आकर गिर पड़े मैंने पीनी पिलाकर उन्हें बैठाया.... उन्होंने आपबीती बताई की पिछले तीन दिनों से उनके बेटे ने उन्हें कमरे में बंद कर रखा है खाना,दवाई सब बंद कर दिया है आज दोनों काम पर गए है तो पोते को रूपये का लालच दे कर कमरे का दरवाज़ा खुलवाकर तुम्हारे पास आया हूँ मेरी मदद करो नहीं ये दोनों मुझे मार देंगे.
मैंने उन्हें खाना खिलाया और मेरे घर पर ही रूक जाने को कहा साथ में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की सलाह भी दी पर उन्हें अपने पोते की फ़िकिर थी की बेटा उनको मरेगा इतना कहा कर वो घर चले गए ,उसी शाम मैं गाँव के लोगे के साथ उनके घर गया उनके बेटे से उनकी हालत के बारे में पूछने लगा तबही उनकी बहु गुस्से में वोली: ये हमारी घर की बेइज्जती करते फिरते है, हमारा खाना खाते है हमारी ही शिकायत करते है लगाओ दो हाथ बूढ़े को इतना सुनते ही उनके बेटे ने सब के सामने अपने बुजुग पिता पर हाथ उठा दिया
मुझे से बर्दास्त नहीं हुआ मेरे साथ में आये लोगो में से एक ने चप्पल उठाकर दिवाकर जी के बेटे की पिटाई करनी शुरु कर दी मैंने किसी को नहीं रोका में चाहता था की उनकी बेटे –बहु को पता चले की गाँव-समाज दिवाकर जी के साथ है तभी उनकी बहु रोने लगी माफ़ी मागने लगी,दीवाकर जी का बेटा पुलिस स्टेशन जाने की धमकी देने लगा उसने कहा आप लोग मेरे घर में घुस कर मुझे बिना मतलब के मार रहे है,इसपर हमने कहा तुमने अपने पिता जी से साथ हिंसा की है उन्हें मारा-पीता है समाज के सीमा दोडी है तुम्हे सजा मिलनी चाहिए,आप लोग कौन होते है सजा देने वाले कानून है सजा देने की लिए आप लोग पंच के नाते मुझ पर जोर जबरजस्ती नहीं कर सकते पंच किसी पर हाथ नहीं उठा सकते.
हमने दिवाकर जी को अपने साथ पुलिस स्टेशन चल कर बेटे –बहु के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने को कहा वो तैयार होगये पर बहु के माफ़ी मागने पर वो रूक गए, बेटे-बहु ने उनका ठीक से देखभाल करने का वादा किया और हम सब वहा से चले आये
उस घटना के बाद से एक डेढ़ महीने सब ठीक रहा पर आखिर के दस दिन से तबियत बहुत ख़राब रहती थी पडोसी बताते है की खाना-पानी,दवाई के बिना उनकी ये हालत हुई थी. अगर मुझे कोई पूछे तो मुझे लगता है दिवाकर जी ने उसी दिन से देह त्याग दिया जिस दिन उनके बेटे ने उनपर हाथ उठाया था एक बुजुग बाप अपनी दुर्दशा से तंग आ गया था.
मुखिया जी की बात सुन कर हम सब चुपचाप शुन्य की का ख़ामोशी से एक दूसरें दो देख रहे थे सभी को पता था गाँव में कोई –कोई बुगुर्ग अपने बच्चो की ऐसी ही शिकायत लिए अक्सर आते रहते है और इस समस्या का कोई समाधान नज़र नहीं आया रहा है
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