बंधन में बंधी मैं
बंधन,
बेचेनी बढता है ,
साथ होना अच्छा तो है, पर
मेरे तन्हाई की साधना में कही
विघ्न सा पड़ जाता है
बंधन जो देखते नहीं
उनकी उम्मीद मुझसे बहुत है
बिना लिखे नियम की फ़िखर
दुनिया को ज्यदा है
हर बंधन की कोशिश
होती है जोर से जकड़ कर रखने को
वो जो चाहे मुझे भी अजीज हो
ऐसा कोई बंधन तो नहीं
किसी के साथ मैं पूरी
किसी की बिन अधूरी
ऐसे किसी बंधन से
मेरी पहचान नहीं
मैं अकेली पूरी हूँ किसी
बंधन की मोहताज नहीं
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 31 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआत्म स्वावलम्बन से ओत प्रोत रचना ! बहुत खूब |
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