कही किसी
ने धर्म पर अपनी
राय दी
मानवता
की मर्यादा को तोड़ता हुआ
असंवेदनशील
टिप्पणी
कही किसी
ने खेल खेला
ऐसा
शतरंज का खेल जिसे
खेलता
कोई है
पर मरते
बस मोहरे है
मेरे शहर
के मोहरे भी
खबर सुन
सक्रिय हो गए
जुलुस
निकला, नारा लगे
शहर आतंक
में डूब गया
हर
इन्सान डरा था
आतंक
चेहरे पर पसरा था
उस दिन
हर चेहरा आतंकवादी बन
जाने को
तैयार था
अपने
बचाव में हथियार उठाने को तैयार था
शहर में
आतंकवाद ही आतंकवाद था
No comments:
Post a Comment
Thanks for visiting My Blog. Do Share your view and idea.