ये सवाल
जो पीछा करता है
हर मोड़
पर पूछा करता है
तू कौन?
तू कौन
है?
मैं हूँ
वो हमेशा हसंता हूँ
पुरषार्थ
पर यकीन करता हूँ
समय पर
जगता
समय पर
सोता हूँ
नियम पर
ही चलता हूँ
समाज ही
मेरा धर्म है
रिवाज ही
मेरा कर्म है
वो बोले
जो मैं सुनता हूँ
उनकी कही
मैं करता हूँ
मैं आदम
हूँ
मैं आदम
हूँ
फिर भी
सवाल दहकता है
मेरे
अन्दर जो तड़पता
वो कौन है?
मेरे
अन्दर एक और शख्स
जो रहता
है
मुझ पर
जो हँसता रहता है
मुझे
डरपोक कहता है
तू बस इस
समाज में
रोज़
पिसने के लिए जीता है
जिसे
जानता नहीं
उसी को
पूजता है
जो जानता
नहीं
उसी को
मानता है
अच्छा
कहलाने की कोशिश में
तू अपनी
कहा सुनता है
तू सिर्फ
इन्सान है
जो ईश्वर
को भी स्वार्थ से पूजता है
अपनी छोड़
सबकी सुनता है
अपने
भीतर नहीं झाकता है
दर- दर
भटकता है
तू सिर्फ
इन्सान है
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