मेरे
सिरहाने रहकर भी
मुझसे
रूठी है किताबे
कुछ टेबल
पर,कुछ पलंग
नीचे जा
छुपी
आधी पढ़ी,
आधी बाकी
कोने में
रखी किताबे
हमेश पढ़ी
जाने के इंतजार में
अलमीरा
में सजी किताबे
ख़ामोशी
से जिंदगी का साथ निभाती
मेरी
दोस्त किताबे..
Rinki
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने रिंकी जी
ReplyDeleteThank you very much Mohit
ReplyDeletegood
ReplyDeleteThanks for your great comment
ReplyDeleteWry wry thanks rinki ji ... nice
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