वो खाली
पेट भटक रहा
बंजर पड़ी
ज़मीन को
तरही नज़र
से ताक रहा
रोज़
सोचता गाँव छोड़े
शहर की
तरफ खुद को मोड
वो देश
का अनंदाता है
भूखे पेट
रोज़ सो जाता है
पेट की
तपती आग जब शरीर
को तोड़
जाती है
उसके
बच्चो के पेट और पीठ का फर्क मिट जाता है
ईट दर ईट
जब बिक जाती है
वो देश
का अनंदाता है
खून के
आंसू रोता है
वो दुकान
से मोल कर भी
अन्न
नहीं खरीद नहीं सकता
तब अपने
सम्मान के लिए
वो किसान
हमेशां के लिए
सो जाता
है
भूख से
जीत जाता है
Rinki
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