देश में
चुनाव का दौर चल रहा हैl सभी राजनीतिक पार्टी अपने- अपने दाव-पेच में लगी है,सिर्फ
दो तरह के ही काम किए जा रहे हैl एक विपक्ष की आलोचना और दूसरा झूठे वादे करना,
आजाद भारत में चुनाव के समय यही चीज़ हर पार्टी को एक दुसरे से जोडती हैl “झूठे
वादे और आलोचना” सभी राजनीतिक पार्टी के अधिकार क्षेत्र में आता है, इस अधिकार को
उनसे कोई नहीं छीन सकता हैl
अब कुछ
बाते किसानो की करते हैl हम सभी ने कभी स्कूल में पढ़ा होगा की भारत कृषि प्रधान
देश है,उस पर निबंध भी लिखे होंगेl देश में सबसे अधिक किसान है जो देश को चलाते है
अन्ना देते हैl
मुझे सब
झूठ लगता है, हमारे स्कूल में हमेशा
से झूठ सीखाया जाता रहा हैl हम क्यों नहीं अपने बच्चो को सच पढ़ाते है, की हमारा देश राजनीतिक पार्टी
प्रधान देश हैl नेता ही देश को घोटाले और शर्मिंदगी देते हैl
मुझे
बचपन में सीखाया गया थाl किसान वो होता हैl जो अनाज उगाता है, ये किताबी परिभाषा
हैl समाज की परिभाषा कुछ इस
तरह से है, वो जो बेरोजगार हैl किसी भी लायक नहीं है, वोही खेती करता हैl शयद
आप मेरी परिभाषा से बिलकुल सहमत नहीं हो, आपके विचार बिलकुल अलग हो, आप को ये भी
लग सकता है, की मैं किसानो का अपमान कर रही हूँ, तो आप अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए
आपमें से कितने अपने बच्चो को किसान बनाने का सपना देखते हैl सब को तो घर में इंजीनियर
या डॉक्टर चाहिए कोई आपने घर में किसी को किसान बनाना नहीं चाहता जिसके बिना
इन्सान का पूरा भविष्य दाव पर लगा हैl
देश के
किसान की मनोदशा इन पंक्तियों से अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ
रोज़
सोचता गाँव छोड़े
शहर की
तरफ खुद को मोड़े
वो देश
का अन्नदाता है,
जो भूखे
पेट रोज़ सो जाता हैl
“मुंदरी
लाल” बुंदेलखंड का किसान आत्महत्या कर लेता हैl क्यूंकि वो बैंक का क़र्ज़ नहीं चूका
पाया थाl जिस बैंक से उसने क़र्ज़ लिया था, उस बैंक के क़र्ज़ वसूलने वाले उसे
उत्पीडित करते थेl वो इतना डरा की उसने आत्महत्या कर लीl हमारे देश में माल्या नाम के एक व्यक्ति हैl
जिसने देश के बैंकों से उधार लिया था, पर वो आज–काल देश से बाहर निकले हुए है सेहत
सुधारने के लिए उन्हें कोई भी उत्पीडित नहीं करता उन्होंने अकेले ही देश में
हंगामा मचा रखा हैl
विधर्व
और आंध्रप्रदेश का किसान सूखे के कारण और क़र्ज़ न चुकाने के कारण जान दे रहा हैl रोज़ कोई न कोई किसान मर
रहा सिर्फ इसलिए नहीं की बारिश नहीं हो रही या वो क़र्ज़ नहीं चूका पा रहा हैl
सबसे बड़ा
कारण है की “किसान आत्महत्या” को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा हैl देश में एक भी
योजना नहीं है, जो किसानो को सीधे-सीधे
लाभ पहुंचाए अनुदान के नाम पर डीजल कम दरो पर मिलता है,वो भी विशेष परिस्तिथि मे,चुनाव
के समय किसी भी पार्टी के घोषणापत्र में किसानो की समस्यों की बात नहीं की जाती हैl किसानो के क़र्ज़ माफ़ नहीं
किये जाते, कर्जमाफी और अनुदान की सुविधा केवल पूंजीपतियों के लिए है,जो राजनीतिक
पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए फण्ड देती हैl बिडम्बना ये है की देश में ग्रामीण क्षेत्र में ही अधिक
वोटिंग होती है, ये किसी पार्टी को नहीं
देखे देता हैl आपने
क्या कभी सोचा है, की एक किसान के आत्महत्या करने से कितना नुकसान होता हैl आर्थिक
और सामाजिक स्थर अकाना मेरा बहुत मुश्किल हैl जब कोई किसान आत्महत्या करता है, तो
हर किसान का होसला टूट जाता हैl एक अन्नदाता की मौत हो जाती है, साथ में उसके
परिवार की भी जो मन ही मन सोच लेता है की घर का कोई बच्चा किसान नहीं बनेगाl
सवाल
उठता है,क्या आप और मैं कुछ कर सकते है? हम कोशिश तो कर ही सकते है, पानी और अनाज
की बर्बादी को कम कर केl बूंद –बूंद पानी को तरसते किसानो के बारे में सोच कर पानी
को बर्बाद होने से बचाएl हर एक अनाज के दाने में किसी न किसी किसान की मेहनत होती हैl
हम जो
दुकान से अनाज खरीद कर खाते है शायद ही समझ पाए की हमारे देश में ऐसे बहुत किसान है,
जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता हैl आज लाखो किसान खेती छोड़ मजदूरी करने लगा है,
क्योंकि जो अनाज वो उगाते है उसे बिचोलिया कम दम में खरीद कर बाज़ार में बहुत
मुनाफे में बेचता हैl
इस
प्रक्रिया में किसान बड़ी मुश्किल से लागत पूंजी ही निकल पाता हैl आज देश में हर
रोज़ जो मरता है वो किसान हैl देश का अन्नदाता भूखे पेट क्यों सोता है?
Rinki
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