सौ में सतर
आदमी...
सौ में सतर आदमी
पिलहाल जब नाशाद
है
दिल पे रखकर हाँथ कहिये
देश क्या आज़ाद है
कोठीयों से मुल्क
की
मायर को मत अंकिये
असली हिंदुस्तान
तो
फूटपाथ पर
आबाद है
सताधारी लड़ पड़े है
आज कुतो की तरह
सुखी रोटी देखकर
हम मुफलिसों के
हाँथ में
जिस शहर के
मुन्तजिम
अन्धे हो
जल्वागाहा के
उस शहर में रोशनी
की
बात बेबुनियाद है
जो उलझ कर रह गई
है
फ़ाइल के जाल में
रोशनी वो गाँव तक
पहुचेगी कितने साल
में
सौ में सतर आदमी
लेखक -अदम गोंडवी
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