साहित्य बहुत व्यापक और
विस्तृत शब्द है, एक विशाल समुंदर के समान जिसकी गहराई और छोर नापना कठिन है वो हर इन्सान जो लिखने में रुचि या कहे
लिखने की हिम्मत रखता है,वो हिंदी साहित्य में अपना छोटा सा योगदान देना चाहता है
या हिस्सा बनना चाहता हैA
कुछ दिनों पहले साहित्य की गरिमा को धूमिल करने वाला एक नया शब्द से मेरा परिचय
हुआ “ कचरा साहित्य “ ये वो शब्द है जिसे शब्दकोश में ढूँढना बेवकूफी होगी इस
शब्द का मतलब जानने के लिए गूगल बाबा के शरण में जाना होगा तब भी शायद ही कचरा साहित्य का ठीक मतलब मिल पाए A
इसे ऐसे समझा जा
सकता है, वो तमाम शौकिया या कहे मजबूर लेखक बिलकुल मेरे और आपके तरह जिनके पास ऐसा
कोई प्लेट फार्म/स्थान उपलब्ध नहीं है, जहाँ वो अपनी लिखी हुई रचना कविता,कहानी,लेख
और विचार को समाज से साझा कर सके, क्योंकि हम जैसे लोग भारत के गली-कुचो में रहते
है, हम जैसे लोग ऐसे परिवार से आते है जिनका साहित्य पृष्ठभूमि नहीं होता हैA हम जैसे लोगो को उत्कृष्ट साहित्यकार हय
की दृष्टि से देखते है और हमारे द्वारा लिखे जाए काम को “कचरा साहित्य” के नाम से
पुकारते हैA
जब पहली बार इस शब्द
को सुना तो मन अन्दर से विचलित हो गया ये सोचकर की कैसे कोई किसी के लेखन को कचरे
जैसा रद्दी समझ सकता है, पर बात इतनी छोटी नहीं है देश के हिंदी के महान लेखक
जिनकी पहुँच अख़बार, प्रकाशन और सीमांत वर्ग के साथ है उनके लिए सफल लेखक बनना आसान
होता है, बनस्पत हम जैसे ब्लॉगर,सोशल मीडिया के दूसरे मंच पर लिखने वाले लोगों के
मुकाबले A
आपने भाई-भतीजा बाद
के बारे में सुना होगा इस विषय पर फिल्म इंडस्ट्रीज़ में जोर-शोर से चर्चा होती रही
है, भाई-भतीजाबाद सिर्फ फिल्म इंडस्ट्रीज़ में ही नहीं राजनीति, छोटे बड़े ऑफिस,इंडस्ट्री
आदि जहाँ भी ये चल जाए देखने को मिल जाता हैA कभी-कभी लेखक वर्ग में भी भाई-भतीजाबाद पाया जाता है, हर उस लेखक को
सहरना और प्रोत्साहन मिल जाता हैA
जो किसी नमी व्यक्ति
या परिवार से तालुक रखते हैA हम
जैसे लोग ब्लॉग,अखबार,पत्रिका और प्रकाशन ऑफिस के चक्की में अपना सर घुसाए परेशान
होते रहते हैA
रिंकी
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