मुलाकात हुई
कुछ अपने जैसे
कलम से सपने
उकेरने वाले
लेखकों से
उन्हें लाइब्रेरी के
हर कोने में
देखा मैंने
जो खुशनसीब थे
वो पुस्तक
प्रेमियों के हाथ में
सजे मिले
कुछ ऐसे भी थे
जो लाइब्रेरी के गलियारे
के अलमारी में
रखे मिले
मुसकुरा रहे
थे
इस उम्मीद में
कोई
पढ़े उन्हें
उस लाइब्रेरी
में एक कमरा था
कुछ लेखक वह
भी खड़े मिले
धुल जमी थी उन
पर
बदरंग से हुए
पड़े
सोच में वो
धुल खाते रहे
कुछ को तो
दीमक खा रहे थे
वो तिल-तिल
पाठकों के
इंतजार में मर रहे थे
है लेखक पाठक का
रिश्ता ऐसा
दीया बाती के
जैसा
रिंकी
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