Sunday, August 5, 2018

दोस्ती हमारी


ना कभी सवाल पूछा
ना कभी प्रमाण माँगा
बस कहने भर से साथ
चल देते थे

मेरे चेहरे को किताब 
की तरह पढ़ लेते थे
दुनिया के  तानो को 
हम साथ में मिलकर 
सह लेते थे

 मान –अपमान के तराजू
में कभी तौला नहीं
बस हँस के सहारा दिया
करते थे

 वो दोस्त ही थे 
जिनके  साथ हम बेफिक्र
जीया करते थे

 ज़िन्दगी का सच 
हार का गम सब भूल के
खुलकर उनके साथ 
रहा  करते थे

 वो दोस्त ही थे 
जो बिना शर्त
साथ दिया करते थे

 लड़ते थे झगड़ते थे
मान भी झट से जाते थे
वो दोस्त ही थे 
जिनके  साथ हम बेफिक्र
जीया करते थे





रिंकी







No comments:

Post a Comment

Thanks for visiting My Blog. Do Share your view and idea.

प्रेम -शमशेर बहादुर सिंह

                                                             द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास फिर भी मैं करता हूँ प्यार रूप नहीं कुछ मेरे पास फिर भी...