Sunday, December 27, 2020

साल मुबारक! / अमृता प्रीतम

 जैसे सोच की कंघी में से

एक दंदा टूट गया
जैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया...

जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया...

जैसे इश्क़ की ज़बान पर
एक छाला उठ आया
सभ्यता की बाँहों में से
एक चूड़ी टूट गयी
इतिहास की अंगूठी में से
एक नीलम गिर गया
और जैसे धरती ने आसमान का
एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया...

Tuesday, December 8, 2020

पाश : ...तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

 यदि देश की सुरक्षा यही होती है

कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में 'हाँ' के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है

हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे क़ुर्बानी-सी वफ़ा
लेकिन 'गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
'गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है

'गर देश का अमन ऐसा होता है
कि क़र्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है

'गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है
कि हर हड़ताल को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है। 

- पाश 

Sunday, November 1, 2020

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम संसोधन 2020 ने करोड़ो को किया बेरोजगार

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम में सरकार ने सितम्बर के माह में रातों-रात संशोधन कर दिया। जिसके परिणाम स्वरुप करोडो लोग बेरोजगार हो गए। संस्थाएँ जो बड़ी संस्थाओ से दान की राशि को प्राप्त कर स्थानीय लोगो को उनके ही गांव -शहर में रोज़गार देते थे, सरकार के आदेश के अनुसार अब बड़ी संस्थाएँ जो FCRA की धन राशि दान के रूप में दूसरी संस्था को देते थे अब नहीं दे सकते। जिसके परिणाम स्वरुप करोडो लोग बेरोजगार हो गए। इस आदेश को तत्काल में लागू कर दिया गया है। इसे ऐसे समझते है आप ऐसी संस्था में काम करते है जिसे दूसरी बड़ी संस्था विदेश से प्राप्त चंदा को दान के रूप में देती है। आज रात को सरकार ने एक आदेश जारी किया की सभी FCRA की धन राशि से चलाए जानेवाले योजना बंद। सुबह जब आप जागते है तो पता चलता है की आप की संस्था अब परियोजना नहीं चला सकती। इसका मतलब अब आपकी भी जरूरत नहीं है।

तीन प्रमुख संशोधन किए गए है। पहला संशोधन, संस्था जिसके पास विदेश से प्राप्त धन राशि  है या कहें FCRA  की विदेशी अंशदान प्राप्त है वो किसी भी दूसरी संस्था को वो राशि नहीं दे सकती। दूसरा संशोधन, कोई भी सरकारी कर्मचारी या सरकारी योजना-परियोजना से जुड़ा  व्यक्ति FCRA के तहत विदेशी अंशदान नहीं ले सकते है। तीसरा संशोधन, अब 80 : 20 का अनुपात का पालन करना होगा। विस्तार से समझे तो 80 प्रतिशत योजना के उदेश्य को प्राप्त करने के लिए और 20 प्रतिशत प्रशासनिक कार्य के लिए। पहले झलक में सरकार का कदम उचित जान पड़ता है  पहले समझते है की FCRA क्या है?  विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम – FCRA जिसके तहत कोई समाज सेवी संस्था या एनजीओ विदेशों से वित्तीय सहयोग या अनुदान ले सकता हैं । ये अनुदान सामजिक कार्य और राष्ट्र हित में ही प्रयोग होना चाहिए विदेशी वित्तीय सहयोग या अनुदान किसी भी प्रकार राष्ट्र के लिए हानिकारक हो या किसी गलत या संदिग्ध गतिविधि के लिए लेना निषिद्ध हैं

अधिनियम के संशोधन के पक्ष में कहने वाले का तर्क है की इससे सरकार विदेशी अनुदान के उपयोग पर नज़र रख सकेगी। राशि का इस्तमाल अराजकतत्व जैसे सरकार के विरोध में आंदोलन,धरना और प्रदर्शन जैसे कार्य में नहीं हो इस पर नज़र रखी जा सकती है। । नक्सल, धर्म परिवर्तन जैसे घटना में कमी होगी। सरकार का कहना है की राशि का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों में नहीं होगा। सरकार विदेशी वित्तीय सहयोग का लेखा-जोखा ले सकती हैं भारत में, अभी हाल-ही में बहुत सारे समाज सेवी संस्था को विदेशी फण्ड लेने पर रोक लगा दिया गया था ,ऐसी आशंका थी कि इन वित्तीय अनुदान का गलत उपयोग किया जा रहा हैं  अधिनियम के संशोधन के विपक्ष में तर्क है की हमने "गेहूं के साथ घून पीसना " सुना था पर सरकार ने  इस अधिनियम को रातो-रात बिना किसी चर्चा के पास करके घून को नहीं निकला गेहूँ ही फैक दिया। कोरोना के विकट समय  में जब लोगो के पास रोज़गार के साधन कम है। इस एक अधिनियम के कारण पलभर में ही करोड़ो लोगो की नौकरी चली गई।

लाखो संस्था जो अंतरास्ट्रीय सस्थाओँ से राशि प्राप्त कर देश के दूर दराज गांव में विकास का कार्य करती थी सब बहुत कम हो जाएगा। सबसे अधिक प्रभाव उन युवाओँ पर होगा जिन्हे अपने ही गांव में रोज़गार मिल जाता था। देश की आर्थिक स्तिथि को देखते हुए ऐसा फैसला जनहित के लिए है लगता नहीं है , ये संसोधन सिर्फ सरकार को फ़ायदा देता दिखाई देता है। चाहे किसी भी पार्टी की हो।


Note: This is not a donation appeal; this is an opportunity to encourage Girls like Gayatri to continue her studies.In this campaign envisaged to support children of economical weak families to get enroll in Intermediate session 2021.


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# Support for Education


Rinki


Monday, October 26, 2020

लड़की होने के नाते -जिंदगी आसान नहीं है मेरे लिए

 शहर के बीचो -बीच बना हॉल लोगों से भरा हुआ है, कुछ वक्ता  थे और  कुछ सुनने वाले ।  आलम यह था कि हर किसी को बोलना था लॉकडाउन में बहुत दिनों तक नहीं सुने जाने से हर शख्स परेशान था। किसी न किसी को अपनी कहानी को सुनने वाले की तलाश थी । आठ महीने बाद एक बड़े स्तर पर मीटिंग आयोजित की गई थी वैसे मीटिंग का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने का था लेकिन आप समझ ही सकते है, एक बहाना ही था कि लोग मिले अपनी वाहवाही करें। अपने लोगों की तारीफ करें इतने दिनों के बाद एक दूसरे से मिले कुछ अपनी कहे कुछ उनकी सुने बस एक मौका।

मंच पर मन्ना आई , माइक पकड़ा और ऊँची आवाज़ में कहने लगी। मै रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से हूँ।  ब्राह्मण वंश की लड़कियां बाहर नहीं घूमती हमारे परिवार की परंपरा थी की लड़कियां गांव के स्कूल में पढ़े, शादी करें, बच्चा पैदा करें अच्छी बीवी बने, मां बने और मर जाए यही उनके जीवन का उद्देश्य समझा जाता है।  मुझसे भी यही उम्मीद की गई थी।

मुझे यह सही नहीं लगा। मुझे लगा मैं इंसान हूं किसी वास्तु की तरह नहीं जिसका इस्तेमाल कैसे करना है कोई और तैय करे। मैं  अलग नहीं हूं अपने भाई  से हम  दोनों इंसान ही है। बंदिश मुझ पर ही  क्यों ?  मैं तो शक्ति  हूँ , तो मेरे पास है प्रजनन करने की शक्ति नया जीवन देने की शक्ति, तो मैं क्यों दुखी थी  क्योंकि मैं ब्राह्मण परिवार से हूं ऊंची जात की लड़कियों को आगे बढ़ने में मुश्किल होती है, लेकिन फिर भी मैंने  हिम्मत नहीं हारी आगे बढ़ती गई पढ़ाई किया और नौकरी कर रही हूँ। मेरी जीत  की ललक, कुछ अलग करने की ललक ने मुझे भीड़  के झुंड से अलग रहना और  इंसान की तरह सोचना समझना की काबिलियत दी।  मैंने अब अपने आप को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है, औरत होना ही मेरा सत्य है और मुझे अपने पर गर्व है।

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठता है, दूसरी वक्ता मंच पर आती  है।

दूसरी वक्ता ने  भाषण शुरू किया।  मेरा नाम गायत्री है। मैं ऐसे  समाज से हूं जिसे समाज ने सबसे नीचले पायदान पर रखा है। आप मेरे बस्ती में जाए और किसी भी लड़की को ढूंढे जो पढ़ी लिखी हो। शायद उसका नाम स्कूल में लिखा हो पर, वो एक शब्द  भी न पढ़ पाए। मेरे उम्र की लड़कियों की शादी हो गई है।  मैं जिस समाज से आती  हूँ वहाँ  का रिवाज़ है  की लड़की  शादी करें, बच्चा पैदा करें अच्छी बीवी बने, मां बने और मर जाए यही उनके जीवन का उद्देश्य  समझा  जाता है मुझसे भी यही उम्मीद की गई थी।

मेरे जीवन की लड़ाई तभी शुरू हो गई थी जब मैंने आठवीं पास किया था। उस समय  एक ही पड़ाव था मेरे जीवन में ,मेरे बाबा के समझ से  मेरी शादी, हमेशा कहते थे अभी भी  कहते है शादी करो और हटाव, सब लड़की की शादी करो और झनझट हटाव। मुझे बचपन से पता है की मै परिवार के लिए झंझट हूँ ,अच्छा हुआ मैंने इस बात को बचपन में ही समझ लिया और अपने लिए खुद ही फैसला लेना शुरू कर दिया।

सामाजिक कार्यकर्त्ता की मदद से कस्तुरवा विद्धयालय में नामांकन करा लिया। दसवीं की परीक्षा देने के लिए पैसे नहीं थे, तो ऑकेस्ट्रा में लड़कियों  के साथ गाना गाने लगी।  पैसे जमा किया और दसवीं पास किया। बाबा भी खुश है क्यों की उनको कुछ करना नहीं पड़ता दारू पी कर घूमते रहते है।  मेरे कमाई से घर में मदद हो जाती है। जिंदगी और सिनेमा में बस इतना फर्क है की सिनेमा का अंत होता है ,और ज़िंदगी हर पल नई  हो जाती है। जिस समाज का ढांचा ही पुरुष को हर तरफ से फायदा पहुँचने के लिया बनाया गया हो ,उस समाज की हर महिला के लिए ज़िन्दगी को समझ कर रास्ता बनाना मुश्क्लि है।

हॉल फिर से तालियों से गूँज उठता है , सब एक दूसरे की तारीफ़ करते है। खाना -खाते है , मीडिया के लिए फोटो खिचवाते है और हॉल से बहार निकल जाते है।  

ध्यान दे: (आप से अनुरोध है की विज्ञापन को क्लीक करे, शायद आपके एक क्लीक से हम गायत्री की पढाई में मदद कर पाए।)

Rinki


Sunday, October 11, 2020

तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं

सूरज की तपिश से तन तापने वाले।
घर का चूल्हा धीरे-धीरे बुझा रहा।
मन के भीतर क्यों कोई विचार नहीं आता ?
सर से छत,रोटी और पढाई सब उठ गए।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं आता ?
 
शहर की सड़क नाप डाला गांव तक।
जो साथ चले थे नहीं पहुँचे घर आज तक।
कुछ सड़क पर ढ़ेर हुए, कुछ पटरी पर बिखर गए।
क्या तू भूल गया, पैर में पड़े छाले।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 
 
अनाज की कोठरी खाली आवाज़ कर रही थी।
तब भी तू मौन था, जाने कैसा नशे में रमा था।
खबरों के जंजाल में फॅसा रहा तू ब्रेकिंग न्यूज़ के मायाजाल में।
नीतियां बनाकर पूरा लोकतंत्र बदल दिया दिया
फिर भी
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठा  ?
 
 
लोकतंत्र के सागर कोई उबाल क्यों नहीं उठता?
इस देश के युवाओं में विचार क्यों नहीं उठता?
नई क्रांति की जगह नहीं इस देश में।
चुप रहने की संस्कृति की सज़ा नहीं इस देश में ।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 
जो वोट मांगते समय झुक कर खड़े थे
आज हमें ही झुकाने पर तुले है।
किसान,छात्र और बुद्धिजीवी विचार इस देश के
जो पूछते है सवाल और झेलते है वार को
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 
इस देश की विडंबना तो देखिए।
जनमानस के भीतर उबाल नहीं उठता
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 

 
रिंकी

 

Saturday, September 26, 2020

या अल्लाह ! कोरोना के कहर से बचा अल्लाह

 
अज़ान के आखिर में एक दुआ हमेशा सुनाई देती है।  " या अल्लाह ! कोरोना के कहर से बचा अल्लाह, सब पर अपना करम बरसा अल्लाह "  नमाज़ अदा  करने के  बाद मौलवी  मोहल्ले की गालियो में निकल जाता और बिना मास्क पहने हर किसी को मास्क पहनने को कहता।  ये रोज़ की दिनचर्या है उसकी।

आज जुम्मा का दिन है बहुत से नमाज़ी इक्कठा हुए है। उनमे से बहुत से लोगो ने मास्क नहीं पहना था , मौलवी साहब ने ऐतराज़ जताया और सब को अपना मुँह और नाक ढकने को कहाँ। सब उनकी बात से  राज़ी हुए नमाज़ अदा कर अपने घर चले गए।

एक बच्चे ने कहा क्या सब अपनी बात सुनते है ? है, बस वही बात मानते है जो उनके फायदे की हो नहीं तो कोई किसी की नहीं सुनाता।

ऐसे क्यों , क्यूंकि तुम बच्चे हो और दिल के सच्चे हो।

आप क्या मेरे साथ मेरे पुराने मोहल्ले में चलेगें वहां भी नमाज़ के बाद सबको समझाना। क्या समझाना है, छोटू ?

सबसे को बताना की आपस में लड़ना सही नहीं है , इससे घर जल जाते है ,स्कूल बंद हो जाता है और अपना घर छोड़ के गांव आना पड़ता है। मैं जब दिल्ली में था तो स्कूल जाता था, घर में दोस्तों के साथ खेलता था सब ठीक था।

एक दिन कुछ लोग गली में आये चिल्लाने लगे मारो गदारो को , सब जगह आग लगा दिया सब जल गया मेरा घर भी पापा को भी मारा। सरदार अंकल ने सब को अपने घर पर रखा और बचाया। मेरे दोस्त राहुल का भी दुकान तोड़ दिया। अगर आप नमाज़ के बाद सबको ये बात कहेंगे की लड़ाई से सिर्फ नुकसान ही होता है तो मैं फिर दिल्ली अपने घर जा सकूँगा।  बच्चे की बात सुन वो चुपचाप उसे देखता रहा, दोनों साथ-साथ एक दुकान पर रुके कुछ खरीदा और फिर चल पड़े।

उसने पूछा ये ग़दर क्या होता है मोलवी दादा ?  

Sunday, September 20, 2020

A man who has dug out the canal single-handedly

 

“Laungi Bhuiyan” a man who has dug out the canal single-handedly in Bihar, India. He carved out a three-kilometre long canal to take rainwater coming down from nearby hills to fields of his village, Kothilawa in Lahthua area of Gaya in Bihar.

  

"For the last 30 years, I would go to the nearby jungle to tend my cattle and dig out the canal. No one joined me in this endeavor... Villagers are going to cities to earn a livelihood but I decided to stay back”- Laungi Bhuiyan

 

 He helped entire community, all will be benefited get water for cattle in summer.

He showed the power of an individual, strong determination and passion. Laungi Bhuiyan, with strong will powered succeeded, but in the remote villages there are many those are still wait for help.





Friday, September 4, 2020

Motivation story by Budhha-चरित्रहीन

 एक बार महात्मा बुद्ध किसी गांव में गए। वहां एक स्त्री ने उनसे पूछा कि आप तो किसी राजकुमार की तरह दिखते हैं, आपने युवावस्था में गेरुआ वस्त्र क्यों धारण किया है?

बुद्ध ने उत्तर दिया कि मैंने तीन प्रश्नों के हल ढूंढने के लिए संन्यास लिया है।

बुद्ध ने कहा- हमारा शरीर युवा और आकर्षक है, लेकिन यह वृद्ध होगा, फिर बीमार होगा और अंत में यह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। मुझे वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है।
बुद्ध की बात सुनकर स्त्री बहुत प्रभावित हो गई और उसने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया।

जैसे ही ये बात गांव के लोगों को मालूम हुई तो सभी ने बुद्ध से कहा कि वे उस स्त्री के यहां न जाए, क्योंकि वह स्त्री चरित्रहीन है।

बुद्ध ने गांव के सरपंच से पूछा कि क्या ये बात सही है? सरपंच ने भी गांव के लोगों की बात में सहमती जताई। तब बुद्ध ने सरपंच का एक हाथ पकड़ कर कहा कि अब ताली बजाकर दिखाओ।

इस पर सरपंच ने कहा कि यह असंभव है, एक हाथ से ताली नहीं बज सकती।

बुद्ध ने कहा कि ठीक इसी प्रकार कोई स्त्री अकेले ही चरित्रहीन नहीं हो सकती है। यदि इस गांव के पुरुष चरित्रहीन नहीं होते तो वह स्त्री भी चरित्रहीन नहीं होती। गांव के सभी पुरुष बुद्ध की ये बात सुनकर शर्मिदा हो गए।

Motivation stories by Budha-गालियों का प्रभाव

 महात्मा बुद्ध एक बार एक गांव से गुजरे। वहां के कुछ लोग उनसे शत्रुता रखते थे। उन्होंने उन्हें रास्ते में घेर लिया। बेतहाशा गालियां देकर अपमानित करने लगे। बुद्ध सुनते रहे। जब वे थक गए तो बोले, आपकी बात पूरी हो गई हो, तो मैं जाऊं। वे लोग बड़े हैरान हुए। उन्होंने कहा- हमने तो तुम्हें गालियां दीं, तुम क्रोध क्यों नहीं करते?


बुद्ध बोले- तुमने देर कर दी। अगर दस साल पहले आए होते, तो मैं भी तुम्हें गालियां देता। तुम बेशक मुझे गालियां दो, लेकिन मैं अब गालियां लेने में असमर्थ हूं। सिर्फ देने से नहीं होता, लेने वाला भी तो चाहिए। जब मैं पहले गांव से निकला था, तो वहां के लोग भेंट करने मिठाइयां लाए थे, लेकिन मैंने नहीं लीं, क्योंकि मेरा पेट भरा था। वे उन्हें वापस ले गए।

बुद्ध ने थोड़ा रुककर कहा- जो लोग मिठाइयां ले गए, उन्होंने मिठाइयों का क्या किया होगा? एक व्यक्ति बोला - अपने बच्चों, परिवार और चाहने वालों में बांटी होंगी। बुद्ध बोले- तुम जो गालियां लाए हो, उन्हें मैंने नहीं लिया। क्या तुम इन्हें भी अपने परिवार और चाहने वालों में बांटोगे..?
बुद्ध के सारे विरोधी शर्मिदा हुए और वे बुद्ध के शिष्य बन गए।

फैज अहमद फैज

 

शायर: फैज अहमद फैज

वो लोग बहुत खुशकिस्‍मत थे
जो इश्‍क को काम समझते थे
या काम से आशिकी रखते थे
हम जीते जी नाकाम रहे
ना इश्‍क किया ना काम किया
काम इश्‍क में आड़े आता रहा
और इश्‍क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया

Tuesday, August 11, 2020

मेरे सपनो को जानने का हक रे----- Lyrics by Charul & Vinay

मेरे सपनो को जानने का हक रे

क्यों सदियों से टूट रही है

इनको सजने का नाम नहीं

मेरे हाथों को जानने का हक रे
क्यों बरसों से खली पड़ी हैं
इन्हें आज भी काम नहीं है

मेरी पैरों को यह जानने का हक रे
क्यों गाँव गाँव चलना पड़ा रे
क्यों बस की निशान नहीं

 मेरी भूख  को जानने का हक रे
क्यों गोदामों में सड़ते हैं दाने
मुझे मुट्ठी भर दाना नहीं

मेरी बूढी माँ को जानने का हक रे
क्यों गोली नहीं सुई दवाखाने
पट्टी टाकने का सामान नहीं

मेरे खेतों को यह जानने का हक रे
क्यों बाँध बने हैं बड़े बड़े
तो भी फसल में जान नहीं

मेरे जंगलों को यह जानने का हक रे
कहाँ डालियाँ वोह पत्ते टेल मिटटी
क्यों झरनों का नाम नहीं

मेरे नदियों को यह जानने का हक रे
क्यों ज़हर मिलाये कारखाने
जैसे नदियों में जान नहीं

मेरे गाँव को यह जानने का हक रे
क्यों बिजली न सड़क न पानी
खुली राशन की दुकान नहीं

मेरे वोटों को यहे जानने का हक रे
क्यों एक दिन बड़े बड़े वाडे
फीर पांच साल काम नहीं

मेरे राम को यह जानने का हक रे
रहमान को यह जानने का हक रे
क्यों खून बह रहे सड़कों में
क्या सब इन्सान नहीं

मरी ज़िन्दगी को यह जानने का हक रे
अब हक के बिना भी क्या जीना
यह जीने के समान नहीं

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...