आँखों में चुभते रहते है
तुम्हारे साथ होने के सपने
अक्सर मुझे तकलीफ देते है।
बंद आंखों से नहीं
छु कर देखू तुम्हे
मज़बूर करते है मुझे ।
वक़्त ने नमो निशान तो मिटा दिया
पर एक परछाई है जो
सुबह से रात तक साथ रहती है
मुझे मजबूर करती है
छु कर देखू तुम्हे।
न फ़ोन या संदेश से
खबर आती है
खैरियत तुम्हारी उसकी दुआ से ही
पता चलता है।
तुम उस चाँद की तरह हो
जो हर रोज़ अपनी जगह बदलता है
कभी छुपता है,कभी बहुत करीब होता है।
पर हमेश दूर,मेरी पहुँच से दूर होता है
और ये ख्याल मुझे मज़बूर करता है
छु कर देखू तुम्हे।
रिंकी
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-06-2021 ) को 'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रविंद्र जी, आपका बहुत धन्यवाद,चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान प्रदान करने के लिए।
Deleteस्वस्थ रहे ,सुरक्षित रहे
इक खोई सी आस को फिर से पाने की चाह और अनथक तलाश....उभरते भाव👌
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
पुरषोतम जी , आपका बहुत धन्यवाद।
Deleteस्वस्थ रहे ,सुरक्षित रहे
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअनुराधा जी , आपका बहुत धन्यवाद।
Deleteस्वस्थ रहे ,सुरक्षित रहे
बहुत ही सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर
Anita Ji, Thanks a lot for your comment. Stay safe
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 31 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमर्मान्तक अभिलाषा एक अप्राप्य के लिए। भावपूर्ण रचना रिंकी जी। हार्दिक शुभकामनाएं।
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