Monday, June 14, 2021

इक सफ़र पर मैं रहा, बिन मेरे-सूफ़ी संत जलालुद्दीन रूमी

इक सफर पर मैं रहा, बिन मेरे

उस जगह दिल खुल गया, बिन मेरे


वो चाँद जो मुझ से छिप गया पूरा
रुख़ पर रुख़ रख कर मेरे, बिन मेरे

जो ग़मे यार में दे दी जान मैंने
हो गया पैदा वो ग़म मेरा, बिन मेरे

मस्ती में आया हमेशा बग़ैर मय के
खुशहाली में आया हमेशा, बिन मेरे

मुझ को मत कर याद हरग़िज
याद रखता हूँ मैं खुद को, बिन मेरे

मेरे बग़ैर खुश हूँ मैं, कहता हूँ
कि अय मैं रहो हमेशा बिन मेरे

रास्ते सब थे बन्द मेरे आगे
दे दी एक खुली राह बिन मेरे

मेरे साथ दिल बन्दा कैक़ूबाद का
वो कैक़ूबाद भी है बन्दा बिन मेरे

मस्त शम्से तबरीज़ के जाम से हुआ
जामे मय उसका रहता नहीँ बिन मेरे

4 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अति सुंदर प्रस्तुति ।
    सादर ।

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