Sunday, July 17, 2022

तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त- राजेन्द्र नाथ रहबर

 तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त, मैं जलाता कैसे


प्यार में डूबे हुए ख़त, मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त, मैं जलाता कैसे

जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाये रखा
दीन जिनको, जिन्हें ईमान बनाये रखा

जिनका हर लफ़्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैग़ाम-ए-ज़ुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह

तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे
साल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात को उठ कर लिखे

तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

3 comments:

  1. ओह!मर्मांतक गजल जो दुनिया से हारे व्यक्ति की विवशता बयां करती है।

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  2. सच कहा अपने, प्यार और दर्द साथ -साथ चलते है।

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