Thursday, July 21, 2022

अग्निपथ – हरिवंश राय बच्चन

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

3 comments:

  1. कालजयी रचना है रिन्की जी।आभार शेयर करने के लिए 🙏🌺🌺🌹🌹

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    1. रेनू जी , बहुत शुक्रिया, हरिवंश जी रचना हर संदर्व में सुन्दर है।

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  2. रविंद्र जी बहुत शुक्रिया।

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