दिलगी की आरजू तो मुझे भी थी
जब आइने में अपना चेहरा देखा तो
तो जाना मुद्तो हुई अपने आप को पहचाने हुए
सपने देखने तो उनका हक़ है
जिनके महबूब उन पर लूट गए हो
चाहने या न चाहने की दहलीज़ पर
कदम रुक गए है
डर है की दुनिया की
रिवाज मेरे प्यार को न
जला के खाक कर दे
कोई क्या मारे आशिक को
यार का रूठ जाना ही
सौ मौत के बराबर
जब आइने में अपना चेहरा देखा तो
तो जाना मुद्तो हुई अपने आप को पहचाने हुए
सपने देखने तो उनका हक़ है
जिनके महबूब उन पर लूट गए हो
चाहने या न चाहने की दहलीज़ पर
कदम रुक गए है
डर है की दुनिया की
रिवाज मेरे प्यार को न
जला के खाक कर दे
कोई क्या मारे आशिक को
यार का रूठ जाना ही
सौ मौत के बराबर
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