विश्वास की कोई सीमा
नहीं होती ओर जब कोई विश्वास को दायरे में बांधने की कोशिश करता है तो विश्वास वही
खत्म हो जाता है ,आंख बंद कर कैसे किसी पर विश्वास करे ये मैंने एक पांच साल के
बच्चे से सीखा में ओर वो दोनों खेल रहे थे खेल –खेल में वो मेरी पीठ पर अचानक से
कूद पड़ा मैंने गिरते हुए उसे संभाला ओर गुस्से से पूछा अगर तुम गिर जाते तो उसने बड़े प्यार से कहा मुझे पता है आप के होते
में नहीं गिरूंगा आप मुझे नहीं गिरने देगी उसके इस जवाब के अन्दर मुझसे ज्यादा
विश्वास भरा था की में उसे किसी भी हालत में गिरने नहीं दूंगी.
उसके जवाब ने मुझे जैसे झंझोर
दिया मैं सोचने लगी हम बड़े उस निराकार पर भी डर-डर कर विश्वास करते है की कही
विश्वास टूट ना जाए...
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