समय के गलियारे में
खुबसूरत से याद मारे-मारे
फिरते है,
सोचा कैद करू सदूक में
पर ये तो
मेरी तरह मलंग
स्वतंत्र लगते है
चुभते बनके शुल
कभी चुभे तो टपके खून
न आंसू बहे, न आह! निकले
खामोशी से मेरी जान निकले
बताना भी मुश्किल
छिपना नहीं आसन
भीतर –भीतर जलाके के
खाक करे मुझे
बुझाना नहीं आसन
कैसे मिटाऊ तेरी याद
नहीं आसन मिटाना तेरी याद ...
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