शहर के भीड़
में
गाडिओं के शौर
में
बाजार के
चकाचौंध में
नहीं
गोरैया ने
आवाज़ लगाई
इस कंक्रीट के
जंगल में नहीं
गाँव में
ज़िन्दगी
आज भी है समाई
आज भी चिडियों
के झुंड देते है दिखाई
शाम में
गोधूली उड़ती है
आकाशवाणी के
बोल देती है सुनाई
सुबहे की बेला
में
लिपा हुआ
चूल्हा और आँगन
सस्कृति की
केवल छाप नहीं
गांव में
संस्कृति ही छाई
बिना पढाई के
बोझ तले दबा बचपन
आम,बेरी ,महुआ,अमरुद को घेरे
बच्चे
हसते,मुस्कुराते बच्चे
हवाओ में महुआ
की महक
खेतो में
पुरवाई की चहक
आज भी है गाँव
में यादों की महक
सोहर, फगुआ के धुन है अलग
रिश्ते में
गर्माहट
रोटी और सब्जी
में
ताज़गी और
अपनापन
दादा -दादी की
याद
गांव की हवाओ
ने रखे है
अपने साथ
जिंदगी इस
कॉन्क्रीट के जंगल में
नहीं,
यादे और
ज़िन्दगी साँस लेती है
मेरे गांव
में ही
रिंकी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार जून 13, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteThaanks Yashoda Ji...Google plus band hone ke aap kis plateform par active hai
Deleteगाँव और शहर का फर्क हमेशा से है और रहेगा ...
ReplyDeleteखुली हवा और कंक्रीट का जंगल ... यही पहचान है गाँव की ... खुशबू है जहाँ जीवन की ...
Bahut Dhayavad
Deleteबहुत खूब लिखा है आपने!!!
ReplyDeleteशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !
Sanjay Ji, Dhanyavad
ReplyDeleteIntteresting thoughts
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