Saturday, June 1, 2019

कागज़ और स्याही


कागज़ और स्याही की
यारी जैसे पुरानी कहानी
खुरदरी ज़िन्दगी चाहे
सपने सच्चे हो जाए
सही और फ़रेब में करे
कोई फर्क नहीं
कागज़ और स्याही ने लिखी
अलग ही कहानी मेरी

कोरा-सफ़ेद था बचपन
अपनों ने ज़िद की
ये बनो, ऐसे सोचो
चलना, बोलना के साथ
ये भी सीखा दिया की
दुनिया की पिंजरे की सलाखों में
बंद हो कैसे जिंदगी
कागज़ और स्याही ने लिखी
समाज और मर्यादा में जकड़ी मेरी कहानी



उन्होंने इतना सिखाया की
खोया गया मेरा
खुद का साया
आज मैं, खुद में बंधा सा
अपने होना साबित करता
बाहर से खुश,अन्दर मरता सा
कुछ है जो, मेरे अन्दर से
मन की सुनने की कहता
कागज़ और स्याही ने लिखी
मेरे आज़ादी की कहानी

रख के परे, उनके सपने और कहनियाँ
बढ़ चला आज में लिखने
कागज़ और स्याही के संग
लिखने नई कहानी

रिंकी


2 comments:

  1. ये कहानी खुद लिखनी होती है ... तभी आगे बढती है ... कलम हिम्मत वालों का साथ देती है ....

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