Everyone does have a book in them. Here is few pages of my life, read it through by my stories,poetry and articles.
Monday, February 20, 2023
क्या करना
Monday, February 13, 2023
उम्मीद की थी
मिला नहीं वो उम्मीद की थी जहाँ , से
गिला शिकवा नहीं लेकिन जहाँ ,से।।
माँ की कोख से जन्म लेते यहाँ सब
टपकता नहीं कभी कोई आसमाँ ,से ।।
जिन्दगी गुज़ार दी है सारी देते देते
घबराता नहीं कभी किसी इम्तिहाँ, से ।।
कुछ भी नहीं लाता साथ अपने कोई
साथ जा नहीं सकता कुछ भी यहाँ, से ।।
जाने ये कैसा वक़्त आ गया है मेरे यारो
जी तो लोग रहें हैं पर परेशाँ परेशाँ , से ।।
बाट जोहते जोहते गईं हैं पत्थरा आँखें
रूखसत होने को हूँ अब तो जहाँ , से ।।
नित्य योगा से गई चमक चेहरे की काया
ढ़लती उम्र में भी लगे लगने वो जवाँ, से ।।
बच्चा रोता परिवार हँसता पैदा होता जब
परिवार रोता रुखसत होता जब जहाँ , से।।
डांटडपट गालीगलौज से नहीं होता हासिल
हो सकता है जो बोल कर मीठी जुबाँ , से ।।
कोख में अपनी रखती प्रसव -वेदना सहती
कौन है बढ कर धरती पे ममतामयी माँ, से ।।
जाता पड़ अकेला फंस जाता है मुश्किलों में
जाता है बिछुड़ जब कोई अपने कारवाँ , से ।।
हर रात की यकीनन सुबह भी होती है यारो
बहार आयेगी फिर घबराता क्यों खिजाँ, से ।।
किसान डरता रहता पड़े ना मार मौसम की
फसल न हो चौपट ओला बाढ़ सूखा तुफाँ, से ।।
कहाँ ढूँढता फिरता है 'शर्मा' सकूँ तु दिल का
है ये भीतर ही छुपा तेरे नहीं मिलता दुकाँ , से ।।
रामकिशन शर्मा
Thursday, February 9, 2023
गली से गुनगुनाते निकले
मस्त होके गली से गुनगुनाते निकले
हर लफ्ज़ में था प्यार दिल चुराते निकले।
इश्क़ का मारा हुआ और क्या करता वह
मय खाने से पीकर लड़खड़ाते निकले
अपने हाले दिल की बात किसे बताता
उनके ही ख्यालों में गुनगुनाते निकले।
घायल था जो ज़िगर,बयां और क्या करता
हिया के ज़ख्मों पर मरहम लगाते निकले।
किसे पता था वह दगा दे कर जाएगी
अपने सिर का बोझ ख़ुद ही उठाते निकले।
दौलत देख कर इरादे क्यों बदल जाते
पैग़ाम - ए - मशाल इश्क़ को जलाते निकले।
न पूछ कि प्यार में कितना तड़पा है "बिन्दु"
दिल पर पत्थर रखके दिल बहलाते निकले।
स्वरचित मौलिक - बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - ( बिन्दु )
Sunday, February 5, 2023
दास्ताँ -ने -गम
दास्ताँ -ने -गम सुनाना चाहता हूँ
जख्म-ए-दिल सहलाना चाहता हूँ।
हो गई दीवार नफ़रत की जो खड़ी
प्यार से उसको गिराना चाहता हूँ।
मुदद्तें हो गईं अब तो बिछड़े हुए
भूल सब गले उसे लगाना चाहता हूँ।
करता हूँ प्यार कितना उस को मैं
दिल चीर अपना दिखाना चाहता हूँ।
दूरियाँ अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहीं
भग कर पास उसके जाना चाहता हूँ।
वक़्त ने शायद खा लिया हो पलटा
किस्मत फिर से आज़माना चाहता हूँ।
काम जो अधर में ही गये थे लटक
अब शुरू फिरसे करवाना चाहता हूँ।
ध्यान दिया ही नहीं जिन बातों पे था
ध्यान उन सब पर लगाना चाहता हूँ।
बहुत ज़ी ली जिंदगी तनाव झेलते हुए
बाकी रही सकूं से बिताना चाहता हूँ।
जो भी हुआ नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था
बुरा सपना समझके भुलाना चाहता हूँ।
जैसे तैसे रोक कर रखे हैं 'शर्मा' ने जो
गले लग उसके अश्क बहाना चाहता हूँ।
रामकिशन शर्मा
Wednesday, February 1, 2023
अनुभूतियाँ
कुछ अनुभूतियाँ
1
अगर तुम्हे लगता हो ऐसा
साथ छोड़ना ही अच्छा है
जिसमे खुशी तुम्हारी, प्रियतम!
इसमे मुझको क्या कहना है
2
जा ही रहे हो लेते जाना
टूटा दिल यह, सपने सारे
क्या करना अब उन वादों का
तड़पाएँगे साँझ-सकारे ।
3
छोड़ गई तुम ख़ुशी तुम्हारी
लेकिन याद तुम्हारी बाक़ी
तुम्हें मुबारक नई ज़िंदगी
रहने दो मुझको एकाकी
4
जहाँ रहो तुम, ख़ुश रहना तुम
खुल कर जीना हँसते गाते
अगर कभी कुछ वक़्त मिले तो
मिलते रहना आते-जाते
-आनन्द.पाठक-
असली परछाई
जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...
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तूने खूब रचा भगवान् खिलौना माटी का इसे कोई ना सका पहचान खिलौना माटी का वाह रे तेरा इंसान विधाता इसका भेद समझ में ना आता धरती से है इसका ना...
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तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ समझ न इनको वस्त्र तू ये बेड़ियां प...
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मेरे सपनो को जानने का हक रे क्यों सदियों से टूट रही है इनको सजने का नाम नहीं मेरे हाथों को जानने का हक रे क्यों बरसों से खली पड़ी हैं इन्हें...