मिथ्या संसार यहाँ तेरा मेरा, क्या करना
छोड़ना इक दिन जमा डेरा, क्या करना ।
जब साथ जाना नहीं रत्ती-भर भी तो
धन दौलत के अंबार लगा, क्या करना ।
बेआबरू हो जिसके कूचे से हों निकले
दिल-ओ-दिमाग में उसे बसा, क्या करना।
हाथ पाँव चलते रहें मौत तक मेरे मौला
साँस भर लेती जिन्दगी का, क्या करना।
जरूरत के वक्त पर हो जायें इधर उधर
ऐसे यार दोस्तों को मुँह लगा, क्या करना।
जिसके दिल में नहीं हमदर्दी तुम्हारे लिए
बीन दुखों की उसके आगे बजा, क्या करना।
स्वार्थी दुनिया सारी होती मतलब की यारी
मदद की उम्मीदें किसी से लगा, क्या करना।
कर्मो का फल भोगने आते हैं सब जीव यहाँ
किसी से शिकायत गिला शिकवा, क्या करना।
दंगे फसाद का डर हर वक़्त बम फूटने का डर
डर के साये में यूँ जिन्दगी बीता, क्या करना।
शरीर पे बुढापे का असर आ जाता नजर 'शर्मा'
बालों को रंगा औ'झुरियों को छुपा, क्या करना।
रामकिशन शर्मा
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