Monday, February 13, 2023

उम्मीद की थी

 मिला नहीं वो उम्मीद की थी जहाँ , से 

गिला शिकवा नहीं लेकिन जहाँ  ,से।।


माँ की कोख से जन्म लेते यहाँ सब 

टपकता नहीं कभी कोई आसमाँ ,से  ।।


जिन्दगी गुज़ार दी है सारी देते देते 

घबराता नहीं कभी किसी इम्तिहाँ, से ।।


कुछ भी नहीं लाता साथ अपने कोई 

साथ जा नहीं सकता कुछ भी यहाँ, से ।।


जाने ये कैसा वक़्त आ गया है मेरे यारो  

जी तो लोग रहें हैं पर परेशाँ परेशाँ , से ।।


बाट जोहते जोहते गईं हैं पत्थरा आँखें 

रूखसत होने को हूँ अब तो जहाँ , से ।।


नित्य योगा से गई चमक चेहरे की काया 

ढ़लती उम्र में भी लगे लगने वो जवाँ, से  ।।


बच्चा रोता परिवार हँसता पैदा होता जब 

परिवार रोता रुखसत होता जब जहाँ , से।।


डांटडपट गालीगलौज से नहीं होता हासिल 

हो सकता है जो बोल कर मीठी जुबाँ , से  ।।


कोख में अपनी रखती प्रसव -वेदना सहती

कौन है बढ कर धरती पे ममतामयी माँ, से ।।


जाता पड़ अकेला फंस जाता है मुश्किलों में 

जाता है बिछुड़ जब कोई अपने कारवाँ , से ।।


हर रात की यकीनन सुबह भी होती है यारो

बहार आयेगी फिर घबराता क्यों खिजाँ, से ।।


किसान डरता रहता पड़े ना मार मौसम की 

फसल न हो चौपट ओला बाढ़ सूखा तुफाँ, से ।।


कहाँ ढूँढता फिरता है 'शर्मा' सकूँ तु दिल का 

है ये भीतर ही छुपा तेरे नहीं मिलता दुकाँ , से ।।


रामकिशन शर्मा

No comments:

Post a Comment

Thanks for visiting My Blog. Do Share your view and idea.

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...