Sunday, February 5, 2023

दास्ताँ -ने -गम

 दास्ताँ -ने -गम सुनाना चाहता हूँ

जख्म-ए-दिल सहलाना चाहता हूँ।


हो गई दीवार नफ़रत की जो खड़ी 

प्यार से उसको गिराना चाहता हूँ।


मुदद्तें हो गईं अब तो बिछड़े हुए

भूल सब गले उसे लगाना चाहता हूँ।


करता हूँ प्यार कितना उस को मैं 

दिल चीर अपना दिखाना चाहता हूँ।


दूरियाँ अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहीं 

भग कर पास उसके जाना चाहता हूँ।


वक़्त ने शायद खा लिया हो पलटा 

किस्मत फिर से आज़माना चाहता हूँ।


काम जो अधर में ही गये थे लटक 

अब शुरू फिरसे करवाना चाहता हूँ।


ध्यान दिया ही नहीं जिन बातों पे था 

ध्यान उन सब पर लगाना चाहता हूँ।


बहुत ज़ी ली जिंदगी तनाव झेलते हुए 

बाकी रही सकूं से बिताना चाहता हूँ।


जो भी हुआ नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था 

बुरा सपना समझके भुलाना चाहता हूँ।


जैसे तैसे रोक कर रखे हैं 'शर्मा' ने जो 

गले लग उसके अश्क बहाना चाहता हूँ।


रामकिशन शर्मा

1 comment:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ ०२-२०२३) को 'एक कोना हमेशा बसंत होगा' (चर्चा-अंक -४६४०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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