दांते -दा डिवीन कॉमेडी
इस नश्वर जीवन के मध्य में,
मैंने खुद को एक उदास जंगल में पाया,
भटककर
सीधे रास्ते से भटक गया
और यह बताना भी आसान नहीं था
कि वह जंगल कितना जंगली था,
कितना मजबूत और ऊबड़-खाबड़ था,
जिसे याद करने से ही मेरी निराशा
फिर से ताज़ा हो जाती है,
मौत से दूर नहीं, कड़वाहट में।
फिर भी वहाँ क्या अच्छा हुआ,
उस पल में ऐसी नींद भरी सुस्ती ने
मेरे होश उड़ा दिए, जब मैंने सच्चा रास्ता छोड़ दिया,
लेकिन जब मैं एक पहाड़ की तलहटी में पहुँचा,
फिर उस डर से थोड़ी राहत मिली,
जो मेरे दिल की गहराई में था,
वह सारी रात, इतनी दयनीय रूप से गुजरी
और जैसे कोई व्यक्ति, कठिन साँस के साथ,
परिश्रम से थक गया, समुद्र से किनारे की ओर भागा,
खतरनाक चौड़े बंजर भूमि की ओर मुड़ा,
और खड़ा रहा, टकटकी लगाए;
वैसे ही मेरी आत्मा, जो अभी भी विफल थी,
भय से जूझ रही थी,
मेरा थका हुआ शरीर,
अब ठहरना चाहता है।
बिना मंजिल की परवाह किये।
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना
ReplyDeleteThanks Abhilasha Ji
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ReplyDeleteThanks you Madam
ReplyDeleteविश्व साहित्य की अनमोल धरोहर उपलब्ध कराने के लिए आभार रिंकी जी🙏
ReplyDeleteThanks you Renu Ji
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteThank you Alok Ji
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