Wednesday, July 31, 2024

राम नाम

 दोहे -


जीवन होगा दर्द मे , जब तक संकट काल।
संगत सच्ची सार है, विपदा गहरी टाल ।।१

बढी होड यश नाम की,मोल मिले है आज।
झूठा भी सांचा लगे , बहुमत बिकता ताज ।२

बेजोड़ हुऐ लोग थे , मीरां सह रैदास ।
बेबूझ नशा दिव्यता,रंगे थे विश्वास ।।३

तेरा मेरा बित रहा , शिथिल तरंग विचार ।
राम नाम मन भरा, अटका भीतर पार ।।४

कैसा मानव लोभ है, भरा सदा अंबार ।
रात दिवा पहरा लगा, भूला रस संसार ।।५

गर्ग विज्ञ!

उदासी के दरख़्तों पर हवा पत्तों पे ठहरी थी

 उदासी के दरख़्तों पर हवा पत्तों पे ठहरी थी

मगर इक रोशनी बच्चों की मुस्कानों पे ठहरी थी

हमें मझधार में फिर से बहा कर ले गया दरिया
हमारे घर की पुख़्ता नींव सैलाबों पे ठहरी थी

ज़रा से ज़लज़ले से टिक नहीं पाये ज़मीं पर हम
हमारी शख़्सियत कमज़़ोर दीवारों पे ठहरी थी

यहाँ ख़ामोशियों ने शोर को बहरा बना डाला
हमारी ज़िन्दगी किन तल्ख़ आवाज़ों पे ठहरी थी

छलक कर चंद बूँदें आ गिरीं ख़्वाबों के दरिया से
कोई तस्वीर भीगी-सी मेरी पलकों पे ठहरी थी

Unknown

Thursday, July 25, 2024

प्रेम का मार्ग- Rumi

 प्रेम का मार्ग कोई सूक्ष्म तर्क नहीं है;

वहाँ का द्वार विनाश है;

पक्षी अपनी स्वतंत्रता के लिए आकाश में बड़े-बड़े चक्कर लगाते हैं,

वे यह कैसे सीखते हैं?

वे गिरते हैं, और गिरते हुए, वो अपने पंख खो देते हैं।

तुमने मुझे इतना विचलित कर दिया, 

तुम्हारी अनुपस्थिति मेरे प्रेम को बढ़ाती है।

मत पूछो कैसे, फिर तुम पास आओ;


 मैं कहता हूँ, और तुम उत्तर मत दो,

मत पूछो कि यह मुझे क्यों प्रसन्न करता है।

तारे पूरी रात भोर तक जलते रहते है। 

मै भी उनके तरह जल रहा हूँ। 


तुम झरना हो,

मै सूखा हूँ, बेजान रेत जैसा 



तुम आवाज़ हो,

मै गूंज  हूँ ।

तुम अब बुला रहे हो,

और मै खत्म हो  चूका हूँ। 

Wednesday, July 24, 2024

आप जेल में क्यों रहते हैं- रूमी

 


यहाँ आत्मा का समुदाय है।

इसमें शामिल हों, और आनंद महसूस करें

अपने सभी जुनून पी लो,

और बदनाम हो।

 

दोनों आंखें बंद कर लें

दूसरी आँख से देखना।

 

रात में, आपका प्रिय भटकता है।

सांत्वना स्वीकार नहीं करते।

तुम  विलाप करते हैं, "उसने मुझे छोड़ दिया।" "उसने मुझे छोड़ दिया।"

बीस और आएंगे।

 

चिंता से खाली रहो,

सोचो किसने सोचा!

 

आप जेल में क्यों रहते हैं

जब दरवाजा इतना खुला है?

 

भय-सोच की उलझन से बाहर निकलो।

मौन में रहो ।

 

 

 

रूमी।

Tuesday, July 9, 2024

दांते -दा डिवीन कॉमेडी

दांते -दा डिवीन कॉमेडी 


इस नश्वर जीवन के मध्य में,

मैंने खुद को एक उदास जंगल में पाया,

भटककर

सीधे रास्ते से भटक गया

और यह बताना भी आसान नहीं था


कि वह जंगल कितना जंगली था,

कितना मजबूत और ऊबड़-खाबड़ था,

जिसे याद करने से ही मेरी निराशा

फिर से ताज़ा हो जाती है,


 मौत से दूर नहीं, कड़वाहट में।

फिर भी वहाँ क्या अच्छा हुआ,


उस पल में ऐसी नींद भरी सुस्ती ने

मेरे होश उड़ा दिए, जब मैंने सच्चा रास्ता छोड़ दिया,

लेकिन जब मैं एक पहाड़ की तलहटी में पहुँचा,


फिर उस डर से थोड़ी राहत मिली, 

जो मेरे दिल की गहराई में था, 

वह सारी रात, इतनी दयनीय रूप से गुजरी

 और जैसे कोई व्यक्ति, कठिन साँस के साथ,

 परिश्रम से थक गया, समुद्र से किनारे की ओर भागा,

 खतरनाक चौड़े बंजर भूमि की ओर मुड़ा,

 और खड़ा रहा, टकटकी लगाए;


 वैसे ही मेरी आत्मा, जो अभी भी विफल थी, 

भय से जूझ रही थी, 

 मेरा थका हुआ शरीर, 

 अब ठहरना चाहता है। 

बिना मंजिल की परवाह किये।  

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...