Thursday, December 26, 2019

रीती -रिवाज़

यही होता है, यही होता रहेगा
ये वो तंज है
जो दर्शाता  है, कैसे तुम्हारी
बुद्धि  बंद है

बिना जाने नियम और  रिवाज़
पालते हो
क्यों नहीं  इसे तर्क से तौलते  हो
अपने ही सवाल से क्यों
दौड़ते  हो ?

स्वार्थ इतना गहरा है की
सब जानते हुई भी
क्यों रीती -रिवाज़ के
चक्की में अपनों  को ही
धकेलते हो

कुछ देर , कुछ देर और
ये किला भी, ध्वस्त  होगा
कुछ है, पागल जो
आवाज़  बन बोलते है

सुनो या अनसुना करो
शोर तो प्रचंड होगा
रीती -रिवाज़ के नाम का
ढोंग, अब ख़तम होगा 

रिंकी

Saturday, November 30, 2019

रिश्वत


बाबू  साहब कब तक घूमाते रहेंगे, अरे ! तू फिर आ गया।  कितनी बार बताया है की साहब के पास कागज़ रखा है। यही बात हम कब से सुने जा रहे है।  पिछली बार हम आए थे, तब भी यही बात कहे थे आप। सीधे -सीधे काहे नहीं कहते की आपको पैसा चाहिए ?  जब सब मालूम है तुमको तब कहे खातिर तमाशा कर रहा है पैसा दे और काम खत्म कर।

क्या कर रहा है ? दूध को बढ़ा रहे है, इ का मिला रहा है। पाउडर इससे दूध गाढ़ा होता है। आज उ साला…..   बहुत पैसा लिया हमसे।  ज़्यदा बेचेंगे तभी तो भरपाई होगा।  

बाबू साहब आ गए घर।  क्या हुआ मुन्ना को ? देखिए न बाजार से दूध लाए थे। जब से पीया है तबीयत ख़राब हो गई।  चलिए अस्पताल जल्दी।
चलो अपनी जेब फड़वाने ! डॉक्टर तो बस पैसा बनाते है।

Saturday, November 23, 2019

मन की बात


काठ के पुतले

हर एक है परेशान किससे बँधे है वो। है किसकी कठपुतली।  समझ न सके की सब की डोर उसके हाँथ। है सब उसकी कठपुलती। 

Wednesday, November 20, 2019

हत्या


पुलिस स्टेशन, बता कितनी अजन्मी लड़कियों को मारा है तुमने ?  कितनी औरतो का एबोर्सन किया है?  उस कुएं से हमें ३० से ज्यादा भूर्ण मिले है।   इतनी सारी बच्चियों को मर डाला।  क्यों डॉक्टर ऐसा सिर्फ पैसो के लिए किया।  मेरा  मकसद तो सिर्फ  पैसे कमाने  था। जिन्होंने मरवाया  ,उनसे पूछो क्यों अपनी ही बेटी को जन्म से पहले मार डाला ?

सभी भूर्ण लड़कियों के नहीं है,बहुत से लड़के भी थे।  लड़के ! ये  क्या कहा रहे हो तुम?   कोई अपने लड़के को  क्यूँ मरना चाहेगा ?  लड़की है  या लड़का उन्हें क्या पता था।

उन्हें  बस एबोर्सन से  मतलब था और हमें पैसे से।  दोनों के बीच खामोशी छा गई।

Tuesday, November 19, 2019

शरणार्थी

"वसुधैव कुटुम्बकम " को सार्थक रूप से प्रमाणित  करने वाली एक  गाथा पढिये।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण और भीषण रक्तपात मचाया तब स्त्री और बच्चो की रक्षा करने हेतु पोलैंड के सैनिको ने 500 महिलाओ और लगभग 200 बच्चों को एक बड़े समुद्री जाहज में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया ताकि उनका जीवन बच सके जहाज के कैप्टन से कहा गया की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ, जहाँ इन्हें शरण मिल सके अगर जिन्दगी रही हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे।

पांच सौ शरणार्थी महिलाओ और दो सौ बच्चो से भरा वो जहाज कई देशो के पास गया जैसे ईरान के सिराफ़ बंदरगाह पहुंचा, वहां किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नही मिली, फिर सेशेल्स में भी नही मिली, यमन के बंदरगाह अदन में भी अनुमति नही मिली। काफी दिनों समुद्र में भटकने के बाद वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया।

उस समय जामनगर के महाराजा “जाम साहब दिग्विजय सिंह” थे जिन्होंने भूख प्यास से बेहाल और कमजोर हो चुके उन पांच सौ महिलाओ बच्चो को अपने राज्य में शरण दी ..महाराजा ने कहा, “ मैं इस क्षेत्र का बापू हूँ और तुम मेरे राज्य में आये हो तो तुम्हारा भी बापू हूँ इसीलिए तुम्हारी हर जरुरत पूरी की जाएगी। महाराजा ने उनके लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कूल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यस्था की। ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे।

उन्ही शरणार्थी बच्चो में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना।

Monday, November 18, 2019

मेरे गाँव की तस्वीर

एक गोरैया ने आवाज़ लगाई
इस कंक्रीट के जंगल में नहीं
गाँव में ज़िन्दगी आज भी है समाई
आज भी चिडियों के झुंड दिखते है
शाम में गोधूली उड़ती है
बरगत के पेड़ के नीचे
ज़िंदगी ले अंगड़ाई

आकाशवाणी के बोल देती है सुनाई
सुबहे की बेला में लिपा हुआ चूल्हा और अगन
बिना पढाई के बोझ तले दबा बचपन
देता दिखाई

आम,बेरी ,महुआ,अमरुद को घेरे बच्चे
हवाओ में महुआ की महक
खेतो में पुरवाई की चहक
आज भी है गाँव में यादों की महक
बरगत के पेड़ के नीचे
ज़िंदगी ले अंगड़ाई

Sunday, November 17, 2019

लोकतंत्र


नेता जी धूप में  घर-घर जाकर सभी लोगों से मिल रहे हैं। जब रामू का घर आया तो वे उसके घर के आगन मे  बिछे  खटिया पर बैठ गए  और कहा कि थोड़ा पानी पिला पानी।  पीने के बाद वोट देने की गुजारिश करके, रहीम के घर की ओर चल दिए।

इलेक्शन का नतीजा  शानदार रहा नेता जी निरविरोध बहुमत से जीते  थे। इलाके से पहली बार कोई नेता राज्य के कैबिनेट में शामिल हुआ था। सब बहुत खुश थे। दो साल बाद नेता जी अपने क्षेत्र का भर्मण करने आए।  मंच पर बैठे कई योजनाओ की फरिस्त सुनाई और वादे किए।  ग्रामवासी बहुत उत्साहित थे।  जब क्षेत्र सूखा ग्रस्त हुआ तो लोगे ने सोचा नेता जी से मदद माँगी जाए।  कुछ लोग नेता जी के आवास पहुंचे पर मिल न पाए।  उनके दफ्तर पर भी गए पर कोई फायदा  नहीं।  सोचा की उनके काफिला को ही रास्ते में रोक लेंगे।  नेता जी का काफिला आने वाला था, सभी राहगीर को वही रोक दिया गया जहां वो थे न आगे जाने दिया न पीछे। पुलिस, अर्ध सेना सड़क पर फैले थे।  जनता एक तरफ खड़ी अपने-आप को नेता जी के सामने बौना या कुछ नहीं होने के अहसास से कुंठित हुई जा रही थी तभी नेता जी की लाल बत्ती वाली गाड़ी सामने से गुजर गई। 

Monday, November 11, 2019

अनोखा बंधन

कौन रहा है बांध मुझे
प्यार का अपनापन
या सांसो का बंधन,
कौन रहा है बांध मुझे
है किसका
अनोखा बंधन

प्रेम ने मुझे बांधा है या
जीवन के रस ने घेरा मुझे
किसके हूँ मैं बंधन में
सवाल बन सोच रहा मेरा मन
मैं चाहू उसे या वो चाहे मुझे
या दोनों बाते है सम्मोहन

मैं मीरा या वो मोहन
है किसका बंधन

कौन रहा है बांध मुझे
है प्यार का अपनापन
या सांसो का बंधन,
कौन रहा है बांध मुझे
है किसका अनोखा बंधन

प्रेम ने मुझे बांधा है या
जीवन के रस ने है घेरे मुझे
किसके हूँ मैं बस में
सवाल बन सोचे रे मेरा मन
मैं चाहू उसे या वो चाहे मुझे
या दोनों बाते है सम्मोहन

मैं मीरा या वो मोहन
जो बांध रही इक डोर हमें
जो खीचें तेरी और मुझे
है किसका बंधन

Sunday, November 10, 2019

एक चुप सौ सुख

नई नवेली दुल्हन जब उसके जिंदगी में आई तो उसकी दुनिया स्वर्ग सी हो गईI वो बस उसको निहारता रहता और मन में हो रही गुदगुदी को छुपाते हुए मुस्कुरा देता I हर बात पर कहता मुझे बहुत अच्छी दुल्हन मिली है।  अब साल होने को आया है, वो अपनी दुल्हन के साथ बहुत खुश हैI उनकी दुल्हन कुछ दिनों से परेशान सी दिखाई दे रही है,उसने कई बार कारण पता करने की कोशिश की पर दुल्हन चुप रहीI क्यूंकि उनकी माँ  ने कहा था की तुम लड़की हो और ये दुनियाँ  का रिवाज है की बस सुनना, बोलना नहीं।  "एक चुप सौ सुख"

बहुत दिन तक वो कुछ नहीं बोली।  जब दर्द हद से बढ़  गया।  एक दिन उसने कहा की उसकी आँखों और सर में दर्द  हैI

वो उसे डॉक्टर से चेक-उप करने ले गया I डॉक्टर ने दुल्हन से पूछा आपने चश्मा लगाना क्यूँ छोड़ दिया? आपकी आँखों की रोशनी पर बहुत असर पड़ रहा है, दवाइयां और चश्मा लेने के बाद दोनों घर आए तो पति ने  पूछा ,तुमने चश्मे वाली बात क्यूँ छुपाई?

 उसकी दुल्हन ने रोते हुए कहा,मुझसे माँ ने कहा था की किसी को मत बताना नहीं तो लोग तुझे अच्छी दुल्हन नहीं कहेंगेI

Saturday, November 9, 2019

पुरानें दोस्त मिले


किताबो के भीतर
मेरे सपनो की दुनिया बसी है
पन्ना बदलते ही बचपन दिखा
पुरानें दोस्त मिले

ख़ुशी,उमंग,झूठे ओर सच्चे
बातो की कहानी मिली
स्कूल की डेस्क पर
कॉलेज के दिनों के तस्वीर मिले

एक पुरानी किताब
के पन्नो में दबा प्यार मिला
गुलाब की पंखुडियो पर लिखा
उसका नाम मिला

सपनो को किताबो से प्रेरणा मिली
जिन्दगी का हर रूप किताबो से ढला
ये वो दोस्त है जो रूठे न कभी
अलमारी में बैठे  मुस्कुराते रहे

सवाल दर सवाल
जब कभी किसी नए सवाल
का जवाब न  मिले
तब अपनी किताब का
पन्ना पलटे

Thursday, November 7, 2019

भोली जनता


एक सियार मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था।  जो गिदर है ना  देश को  नोच कर खा रहे है, प्यारी जनता " क्या आप देश को बचाएंगे ? बचाएंगे ?. जनता जो भोली थी, सियार और गीदर में फर्क नहीं जानती थी। या जनता को फ़िक्र नहीं थी। वो खुश थी क्यूंकि कुछ का पेट भरा था ,कुछ के पास आधा ज्ञान था , कुछ धर्म  को बचाना चाहते थे , कुछ के पास पैसा था और कुछ ऐसे थे जो इन सब झंझट में फसना नहीं चाहते थे।

एक दिन जन समर्थन का मेला लगा ,उस मेला में सियार जीत गए ।   कुछ दिन के बाद जनता जो भोली थी, उसे दाल में काला नज़र आने लगा था पर वो समझ चुकी थी।  सियार और गीदर की लड़ाई में जनता के साथ जो हुआ था  वो  ऐसा था "आ बैल मुझे मार "  जनता फिर भी उम्मीद लगाए बैठी है। 

Sunday, November 3, 2019

एक तरफा प्यार


सदूक के किसी कोने मे
शायद शाल में लपेटकर
या फोटो के एल्बम में
कही छुपाया था
तुझको लिखे ख़त मैंने

अब तो याद भी नहीं
कितनी शायरी,कविता लिखी तुम्हे  
संदूक जब भी खोलती हूँ
लगता है किसी ने गुलाल डाल दिया हो
रंग,खुशबू और एहसास  
एक साथ महक उठते है

कभी उन खत को भेजा नहीं
डर जैसी कोई बात भी न थी
मैं इस खूबशूरत प्यार मे
हमेशा जीना चाहती थी
मेरे एक तरफा प्यार को
बचाए रखने का यही
एक रास्ता था

Rinki




खामोश रिस्ता

ख़ामोशी भी एक तरह की सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका
मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
समाज की रीत, परिवार की इज़्ज़त
मजबूरियॉ दोने ने गिनाए

ख़ामोशी ज़हर की तरह फैली
प्यार का खिलना नामुमकिन था
हम थे तो आमने –सामने
लेकिन ख़ामोशी की एक खाई सी
हमारे बीच पट्टी रही

एक सवाल
कभी जो कानो में शौर करता है
क्या प्यार नहीं है?
हम दोनों के दरमियाँ
फिर एक लंबी ख़ामोशी
हमेशा के लिए छा जाती है

कोई रिस्ता न सही राबता
हमदोनो के बीच ज़रूर है
उन रिस्तो से ज़्यदा शकून
देता है तेरा-मेरा अनकहा रिस्ता

रिंकी

Saturday, November 2, 2019

अनजान सफर


नया तूफानी पहल की ललक
हाथ में  हिम्मत की मशाल
चेले हम अनजान सफर

पुराने  रास्तो पर वो चलते है
जिनकी कोई मंज़िल नहीं होती
वो जो सपने देखते है
अपने रास्ते बनाते मिटाते
निकल जाते है, अनजान सफर

गिरने से तो सब डरते है
खोने का भी डर सभी को है
गिरना और डरना सब सही
वो जो निकल पड़े है अपने सफर
चेले हम अनजान सफर

ये जिंदगी भी एक सफर है
अनजान रास्ते और लोग
सिखाते है कुछ मीठा और खट्टा
चखते रहो स्वाद रास्तो का
मज़बूत बनता है अनजान सफर 

रिंकी




Wednesday, October 2, 2019

महात्मा गाँधी का पर्यावरण संरक्षण पर दर्शन

इस वर्ष २०१९ में  माहत्मा गांधी जी  का १५०वा  जन्मदिवस है। भारत या दुनियाँ में  माहत्मा गांधी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं उनके विचार और आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक है  जितना  १०० वर्ष  पहले थे । गाँधी जी के अहिंसा के विचार के बारे में  सभी को ज्ञात है पर पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर गाँधी जी  क्या विचार थे।  ये उनके  द्वारा लिखे गए  किताब और लेख से पता चलता है। आज दुनिया जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या से जूझ रही  है, ये कोई काल्पनिक समस्या नहीं है, अगर इस साल २०१९  की बात करे तो अब तक सरकारी आकड़ो  के अनुसार १२०० लोगो की जान बाढ़ या अन्य आपदा के कारण  पुरे भारत में  गई  है। विज्ञानिको की माने  तो पुरे विश्व में समय से पहले या बाद में वर्षा, थोड़े समय में अधिक वर्षा, आंधी- तूफान, जंगल की आग , भूस्खलन और धुर्वीय बर्फ का तेज़ी से पिघलना का मुख्या कारण पृथ्वी के जलवावु में तेजी से आ रहे परिवर्तन के कारण हो रहा है।

गाँधी जी ने १९०९ में " हिन्द स्वराज" नाम की किताब लिखी थी जिसमे उन्होंने मानव के द्वारा तेजी से औधोगिक विकास के कारण भविष्य में  होने वाले नुकसान के बारे में  अपना विचार व्यक्त किया है।  गाँधी जी आज से सौ साल पहले से ही जानते थे की पर्यावरण का नुकसान मानव जीवन को विनाश के करीब पहुंचा देगा।
अपनी पुस्तक ‘द हिंद स्वराज’ में उन्होंने लगातार हो रही खोजों के कारण पैदा हो रहे उत्पादों और सेवाओं को मानवता के लिये खतरा बताया था। उन्होंने वर्तमान सभ्यता को अन्तहीन इच्छाओं और शैतानिक सोच से प्रेरित बताया। उनके अनुसार, असली सभ्यता अपने कर्तव्यों का पालन करना और नैतिक और संयमित आचरण करना है।

अपने एक लेख ‘की टु हेल्थ’ (स्वास्थ्य कुंजी) में उन्होंने साफ हवा की जरूरत पर रोशनी डाली। वह कहते हैं कि प्रकृति ने हमारी जरूरत के हिसाब से पर्याप्त हवा फ्री में दी है लेकिन आधुनिक सभ्यता ने इसकी भी कीमत तय कर दी है। वह कहते हैं कि किसी व्यक्ति को कहीं दूर जाना पड़ता है तो उसे साफ हवा के लिये पैसा खर्च करना पड़ता है। आज से करीब 100 साल पहले 01 जनवरी, 1918 को अहमदाबाद में एक बैठक को सम्बोधित करते हुए उन्होंने भारत की आजादी को तीन मुख्य तत्वों वायु, जल और अनाज की आजादी के रूप में परिभाषित किया था। 

 मशीनीकरण पर  विचार
मशीन इंसान को बेकार बना रही है, उस समय भारत के  बॉम्बे में  कपडा बनाने की बहुत कल -कारखाने थे जो सारे देश को कपडा निर्यात करते थे  उन कारखाने मे काम करने वाले मज़दूरों की दशा बहुत दयनीय थी।  गाँधी जी  देश को आत्मनिर्भर बनता देखना चाहते थे, उनका सपना मज़दूर बनाना नहीं स्वाबलम्बी देश बनाना था। अठारहवीं सदी के औधोगिक क्रांति को वो संसाधनों के दोहन की तरह देखते थे और अंग्रेज़ो को व्यापारी  शासक की तरह देखते थे। जो भारत के संसाधन का दोहन राज्य कर रहे थे। 

शुद्ध जल, वायु और अनाज पर विचार

गाँधी जी कल कारखानों से निकलते धूए के नुकसान से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ़ थे।
गांधीजी जी के अनुसार पर्यावरण मशीनों का अधिक इस्तेमाल मानव के जीवन में नकारात्मक प्रभाव लेकर आएगा इसलिए उन्होंने रेल, ट्राम  गाड़िओ का विरोध किया था उन्हें पता था कि कल -कारखानों से निकलने वाला धुआं और दूषित जल मानव के जीवन पर असर डालेगा कारखानों से निकला हुआ कचरा भारत की नदियों को दूषित करेगा।  जिसके कारण लोगों के स्वास्थ्य पर असर होगा उनका विचार था इंसान को मेहनत करना चाहिए क्योंकि बिना यंत्र की सहायता से किए गए काम पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।  उन्होंने हमेशा स्वराज का सपना देखा था।  वो चाहते थे की भारत का हर गांव स्वावलंबी बने हर गांव अपना भोजन खुद उगाए कपड़ा खुद बनाएं लोगों का इलाज आयुर्वेदिक पद्धति से हो और बच्चे शिक्षित हो।  हम सब जानते हैं की वे  छुआछूत की भावना को भी खत्म करना चाहते हैं।   वे यह समझते थे कि भविष्य में संसाधनों का बंटवारा लोगों में बराबर नहीं होगा यदि देश बहुत अधिक उद्योग पर निर्भर हो जाए तो  उद्योगपति  धन कमाएंगे और गरीब उनके कल कारखानों में  मजदूरी करेंगे। गरीब और अधिक गरीब हो जाएंगे इसलिए वो स्वदेशी अपनाने को कहा करते थे।

पाश्चात्य रोजगार पर विचार
गांधी जी डॉक्टरों और वकीलों को समाज के लुटेरे की तरह समझते थे उनका मानना था कि डॉक्टर अपनी सुविधा के अनुसार रोगियों का इस्तेमाल करते हैं वे उनका इलाज नहीं करते बस पैसे कमाने की मशीन की तरह समझते हैं ठीक वकील भी लोगों से केवल पैसा  लेते हैं और उन्हें गुमराह करते हैं।

आज से 100 वर्ष पूर जलवयू  परिवर्तन जैसी कोई चीज नहीं थी या कोई सोच भी नहीं सकता था कि अट्ठारह सौ शताब्दी में हुए औद्योगिक क्रांति के कारण 100 साल के भीतर ही पृथ्वी में पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगेगा क्योंकि हम आज जीतनी  भी आपदा हम झेल रहे है सभी  जलवायु परिवर्तन के कारण  से ही है।  पिछले 100 साल से की जा रही संसाधनों का दोहन का ही परिणाम हैगांधीजी इस बात को उस समय भी बेहतर तरीके से समझते थे उन्होंने अपनी किताब हिंद स्वराज और कई लेखों में इस समस्या के बारे में विस्तार से लिखा है।

23 अक्टूबर को परिवर्तन पर विश्व स्तरीय  बैठक का आयोजन किया गया है जिसमें साफ तौर से यह कह गया है की यदि हमने अभी इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में रोजगार ,भोजन, शुद्ध जल, शुद्ध वायु जैसी बुनियादी चीजों पर गहरा असर पड़ेगा ध्रुव की बर्फ पिघलने  के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। समुंद्र में प्लास्टिक का कचरा समुंद्र के जैविक प्रणाली को नुकसान पहुंचा रहा है, हाल मे  की गई अनुसंसाधन के अनुसार कई समुद्री मछलियों  के पेट में प्लास्टिक के अंश पाए गए हैं जो मानव जीवन के लिए बहुत हानिकारक है। 

हम सब भारतवासी गांधी जी को बहुत सम्मान देते हैं इसलिए नहीं की उनकी तस्वीर नोट पर छपी है, बल्कि इसलिए भी उन्होंने भारत की आजादी में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया था।  आज देश गुलाम नहीं है पर भविष्य में जलवायु परिवर्तन की समस्या गंभीर रूप ले सकती है इसलिए हम सब को मिलकर छोटे- छोटे कदम उठाकर जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं या रोक सकते हैं और यह बहुत मुश्किल काम नहीं है छोटे -छोटे कदम जैसे पानी 

Thursday, July 18, 2019

चीनी और नमक


गांव मे बरगद के पेड़ के नीचे क्रांति बहुत ही जोश से ही बोले जा रही हैI  इस फैक्ट्री ने हमारे खेत खलियान नदी और तालाबों को गंदा कर दिया है I धीरे -धीरे हमारे पानी में यह जहर मिला रहे हैं I हमारी जमीन को बंजर बना रहे हैं I मुझे या हम में से किसी को भी चीनी मील से शिकायत नहीं जिस राज्य में जीविका का कोई साधन नहीं है,कम से कम वहां चीनी मील तो चल रहा है लेकिन खतरा बहुत है इस मील के वजह से पर्यायवरण दूषित हो रहा है  या हम चीनी मील को दोष नहीं देते हैंI  चीनी मील चलाने वाले उद्योगपतियों और सरकार के लचर रवैया के वजह से वह गन्दा -पानी रसायन और उत्पाद बनाने के बाद बच गए कचरे का सही निवारक नहीं कर रहे हैं Iगन्दा पानी हमारे खेतों में या नदियों में बहा दे रहे हैं I


याद कीजिए जब गर्मियों में गन्ने से चीनी बनाया जाता है I वातावरण कैसी गंदगी फैल जाती है, हवा दूषित हो जाती है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है I

क्रांति बिना रुके बोली जा रही है I सामने बैठे लोग कुछ सहमत है कुछ असहमत है और अधिकतर को परवाह नहीं है, क्योंकि गांव के खेत खलियान और नदी उनके हिस्से में नहीं आते हैं I उनके हिस्से में केबल मजदूरी और भूख है I जो सहमत भी हैं उन्हें भीतर से पता है कि वह कुछ नहीं कर सकते हैं I

क्रांति गांव की बेटी है युवा है और जोश के साथ अपना काम करती है I क्रांति को निराश नहीं करना चाहते हैं या कहिए की क्रांति का परिवार गांव में सबसे बड़ा खानदान है, इसलिए भी ग्रामीण उसके बातों को नहीं काटते I

आपको क्या लगता है ?? हमें क्या करना चाहिए ?

अपने खेतों और पानी को बचाने के लिए I नदी का पानी काला हो गया है I   रात में चीनी मील का कचरा और गंदा पानी खेतों में डाल जाते हैं और हम कुछ नहीं करते हैं बताइए क्या किया जाए ? और तो और पिछले दो साल में से हमें हमारे गन्ने का सही मूल्य प्राप्त नहीं हुआ है I जब हम पैसे मांगते हैं, वह हमें चीनी की बोरियां पकड़ा देते हैं और कहते हैं बाजार में बेच  दीजिए बताइए?   एक तो हमें हमारा पैसा ना मिले और ऊपर से हमारे ही संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैंक्या हमें इसके लिए कुछ करना चाहिए?

वो बेलगाम और अपने धून मे बोली जा रही है I

रमन सिंह चाचा आप ही बताइएबात तो तेरी ठीक है पर क्या किया जा सकता है हम गांव वाले विचार करेंगे चीनी मील के प्रबंधकों से बहुत बार हमने बात की है, कि वह नदी में पानी ना बहाए पर आज तक कोई फर्क नहीं हुआ है फिर भी बात सही है तेरी ....

हमसब जरूर इस पर चर्चा करेगें , अब बात खत्म कर। सब को भूख लगी है। सबको घर जाने दे और तू भी घर पर जा।

खत्म हो गई तेरी सभा। जब से तू एनजीओ के चक्कर में पड़ी है , तेरा माथा फिर गया है।  भूख लगी है। जल्दी से खाना दे।  माँ
आज बहुत सारे लोग थे पर मुझे लगता नहीं कोई कुछ करेगा।  और घर में सब कैसा था ?

तेरे भाई का वही हिस्सा -हिस्सा का रट,  क्यों नहीं दे देती उसका हिस्सा?   उसे हिस्सा नहीं सब कुछ चाहिए तेरा हिस्सा भी सभी उसी को चाहिए।

यह कैसे हो सकता है मां जब दो लोगों का हिस्सा है मेरा और उसका तो दोनों में बराबर बैठेगा।   भाई ऐसा क्यों सोचता है?   कि सब उसका है। ..

क्योंकि समाज में ऐसे ही होता है। बाबा आप कब आएअभी -अभी आ रहा हूं, पर बाबा जायज़ाद मे  लड़की -लड़की दोनों का हिस्सा  बरारबर है।
कानून में तो बहुत कुछ है, लेकिन समाज में सब लड़कों का ही हिस्सा माना जाता है। इसलिए भाई मांग रहा है। 

क्रांति का हिस्सा पढाई और शादी के लिए है।  बबुआ को उसका हिस्सा दे दीजिए और जो करना है करे।  सुन रहे है न आप जी।

तड़के सुबह चार बजे क्रांति के घर के पास खेत में कुछ जल रहा है। गांव में कानाफूसी हो रही है कि खेत में लाश जलाई जा रही है।  यह बात आग की तरह फैल गई की क्रांति की लाश जलाई जा रही है। खेत में लकड़ी और घास फूस पर जो लाश रखी है वह क्रांति की हैं।

किसी ने जोर से चिल्लाया दो बोरी चीनी के जल्दी ला उससे आग अच्छी से जलती है। आधी जली लाश को ट्रैक्टर में रख नदी में बहा दिया गया।

पुलिस, यह सब कैसे हुआ सिंह जी ?   क्या कहें पता नहीं क्रांति को क्या हो गया, सुबह देखा तो फासी से लटक रही थी।  घर की बदनामी ना हो इसलिए क्रिया-कर्म जल्दी से कर दिया आप तो समझते ही हैं।

बरगद का पेड़  लोग नीचे बैठे हैं। रात में क्रांति के घर से मारपीट की आवाज आ रही थी उसका भाई उसे मार रहा था। वही जायदाद वाला कहानी । देखो कहानी कैसे खत्म हुई।  अच्छी लड़की थी। ......  वो।


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नायरा तू इतना नमक क्यों डालती है खाने में ?  घर के सभी लोगों का बी पी बढ़ा देगी।  कम नमक डाला कर।
माँ….बिना नमक मजा नहीं आता खाने में। ठीक है जल्दी से काम कर सारा दिन घर में बैठी रहती है। कभी कहीं बाहर भी जाया कर।

दरवाजे पर आवाज आई नायरा है क्या?

अरे नाजिया  तू कितने दिन के बाद आई हैअगर तू घर से बाहर नहीं निकलेगी तो किसी से मिलना कैसे होगा। सुन एक बात कहने आई हूं।
अब तू दोबारा स्कूल तो नहीं जाएगी? तुझे तो छोड़ो कई साल हो गए,  फिर एक काम क्यों नहीं करती है। सिलाई- कढ़ाई या कुछ और सीख ले।  सुना है कुछ लोग हैं जो लड़कियों को गांव में हुनर सीखा रहे हैं। तू भी चल न,  देख अगर तू चलेगी तो अब्बा मुझे भी जाने देंगे नहीं तो तुझे तो उनका पता है।  हमेशा घर में रहो घर में रहो करते रहते हैं। कल तू अपने घर में बात करके मुझे बताना अब मैं चलती हूं।

रात में खाने में क्या बनाएगी तू देख अम्मा शाम हो गई है जो सब्जी है वह बना लेती हूं।  अम्मा एक काम करना नमक खत्म हो गया है लेकर आ जा। 

नायरा ..मेरे पैर में बहुत दर्द है ऐसा कर तू ही जाकर ले आ बहुत रात नहीं है शाम है।  ठीक अम्मा


एक घंटे से ऊपर हो गए यह लड़की अभी तक आई नहीं पता नहीं क्या हो गया ? दरवाजे पर आवाज आई और नायरा खड़ी थी मां ने पूछा क्या हुआ किसने क्या देखते ही देखते पंचायत बैठा दी गई।

नायरा से पूछा गया की क्या हुआ ?वह गुमसुम बदहवास बैठी हुई है......  कुछ बोली नहीं

असिन वह और उसकी दोस्त थे बस इतना ही बोल पाई।  असिन के परिवार को बुलाया गया और यह फैसला लिया गया कि नायरा और असिन  का निकाह कर दिया जाए क्योंकि बलात्कार करने वालों में असिन ही मुसलमान है बाकी चार हिंदू हैं, असिन को  निकाह करनी होगी।

निकाह के दस  महीने बाद....
खाना इतना फीका  बनाती है कि खाने में स्वाद ही नहीं आता है।  कितना भी बोलो कि नमक डालाकर पर रत्ती भर भी नहीं सुनती।

क्या हुआ असिन क्या सोच रहा है तू कुछ नहीं अम्मा शादी नहीं नीभ रही ठीक से।

तुझे ही बहुत गर्मी थी ना।  तो भुगत। अकेले नहीं था और भी लोग थे और यह बच्चा मेरा है कि नहीं मुझे पता नहीं। मुझे तो नहीं लगता है की मेरा है

बस बहुत हो गया।  दिमाग ठंडा करो और खाना खाओ। ठीक  अम्मी
आज खाने में बहुत स्वाद है नमक सही डाला आज इसने।


नायरा ..  मुझे नहीं लगता तू इस शादी से खुश हैं और मैं भी खुश नहीं हूं।  मैं तुझे तलाक देता हूं कल तुम अपने घर चली जाना।

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...