Thursday, November 7, 2019

भोली जनता


एक सियार मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था।  जो गिदर है ना  देश को  नोच कर खा रहे है, प्यारी जनता " क्या आप देश को बचाएंगे ? बचाएंगे ?. जनता जो भोली थी, सियार और गीदर में फर्क नहीं जानती थी। या जनता को फ़िक्र नहीं थी। वो खुश थी क्यूंकि कुछ का पेट भरा था ,कुछ के पास आधा ज्ञान था , कुछ धर्म  को बचाना चाहते थे , कुछ के पास पैसा था और कुछ ऐसे थे जो इन सब झंझट में फसना नहीं चाहते थे।

एक दिन जन समर्थन का मेला लगा ,उस मेला में सियार जीत गए ।   कुछ दिन के बाद जनता जो भोली थी, उसे दाल में काला नज़र आने लगा था पर वो समझ चुकी थी।  सियार और गीदर की लड़ाई में जनता के साथ जो हुआ था  वो  ऐसा था "आ बैल मुझे मार "  जनता फिर भी उम्मीद लगाए बैठी है। 

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. यही तो ताज्जुब की बात है। खैर, आपने बढ़िया लिखा है

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  3. मगर जनता भी अब भोली नहीं रही र‍िंंकी जी

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