सदूक के किसी कोने मे
शायद शाल में लपेटकर
या फोटो के एल्बम में
कही छुपाया था
तुझको लिखे ख़त मैंने
अब तो याद भी नहीं
कितनी शायरी,कविता लिखी तुम्हे
संदूक जब भी खोलती हूँ
लगता है किसी ने गुलाल डाल दिया हो
रंग,खुशबू
और एहसास
एक साथ महक उठते है
कभी उन खत को भेजा नहीं
डर जैसी कोई बात भी न थी
मैं इस खूबशूरत प्यार मे
हमेशा जीना चाहती थी
मेरे एक तरफा प्यार को
बचाए रखने का यही
एक रास्ता था
Rinki
प्रेम मंजिल तक न पहुंचे तो अधूरा रह जाता है ...
ReplyDeleteकई बात ख़त खुशबू लिए होता है प्रेम की ... यादों की धरोहर ...