Saturday, December 31, 2016

नया साल मुबरक-2017

नए साल के
नए  पन्ने पर
लिखे संभल-संभल
बने हर पल जिंदगी का
सुखद,संपन्न और सफल
नया साल मुबरक-2017


आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद,आपके प्यार और प्रोत्साहन के लिए आभार..

रिंकी

Sunday, December 18, 2016

रिश्तो का स्वाद बदल जाता है

हर बार यही होता है
बीते कल का नमक
आज में धुल जाता है
और रिश्तो का स्वाद बदल जाता है

मैं शहद में डुबो कर
शब्द कहूं तो भी,
नमक का असर नहीं जाता है
और फिर रिश्तो का स्वाद बदल जाता है

किसी रिश्ते, नाम या रस्म का
मोहताज नही जो हमारे बीच में है
जो भी है, मेरे भीतर चुभता रहता है

और रिश्तो का स्वाद बदल जाता है

Rinki

Sunday, December 11, 2016

देशप्रेमी या देशद्रोही आप ही सोचे????


आज-काल मेरा सारा समय इसी सोच में डूबी रहती हूँ, की ऐसा क्या करूँ की मुझे अपने-आप को देश-भक्त या देशप्रेमी साबित करने के लिए बार-बार इंतिहान नहीं देना पड़े, क्या मैं कुछ ऐसा कर सकती हूँ? की मुझे किसी व्यक्ति विशेष या शासन कर रही सरकार के द्वारा तैय किए पैमाने पर गुजरना न पड़ेI जब कभी भी किसी शासक को लगता है की देश  की बहु-संख्या आबादी को एक ऐसे मायाजल में फंसा दिया जाए की उनकी निर्णय लेने की क्षमता काम करना बंद कर दे I  देश का नागरिक चाह कर भी बोल न सके यदि बोले भी तो पूरा और सही न बोले ,बस देश में देशप्रेम और देशभक्ति का नारा बुलंद किया जाए, और कुछ भी किया जा सकता है, क्यूंकि कोई भी देशद्रोही नहीं कहलाना चाहता, इसलिए चुप रहने में ही भलाई जान पड़ती है I अक्सर चुप रहना या ना बोलना,बोलने से अधिक खतरनाक साबित होता है, और मैं समझ नहीं पाती की लोग शौर मचाने को उपद्रव या देशद्रोह से कैसे जोड़ लेते है I मुझे जहाँ तक पता है दुनिया में सबसे ज्यदा शांति सिर्फ कब्रस्थान में होती है जहाँ कोई जिंदा नहीं होता I

किसी भी भीड़ पर शासन करने के कई तरीके है, एक भीड़ का पेट भरा रहे, उसके पास काम रहे और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली हो जिससे भीड़ को लगे वो शिक्षित बन रहा है I दूसरा किसी भी अनजाने डर से भीड़ डरा रहे, “डर बना रहना चाहिए” क्योंकी इससे भीड़ में एकता बनी रहती हैI दुनिया भर में डर की राजनीती काम कर रही है, अमेरिका में ट्रूम की विजय, रूस में पुतिन का शासन और नोर्थ कोरियाI

किसी भी देश की सता जनता को नियंत्रित करने के लिए एक व्यक्ति को हीरो बनती है, वो हीरो नहीं जो हम सिनेमा में देखते है, वो हीरो जिसे हँसना और रोना दोनों आता हो, जो अपने मन की बात कहता हो पर आपकी सुनता नहीं, मुझे हेरोपंती से कोई परहेज नहीं, पर जब कुछ ताकते परदे के पीछे से देश को चलाने लगे तो सोचना का मन करता हैI

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, खाने-पीने, खर्च करने के पैमाना तैय किया जा रहा है, लोग लाइन की जदोजहद में मर रहे है, पर फिर भी कुछ लोग जयकरा करने से नहीं शरमाते, रोज़ नया तमाशा हो रहा है और हम तमाशबीन बने हुए हैI

क्या देश के नागरिक को कभी भी संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को पूरी तरह पा सकेगे? मेरा पक्ष बस इतना है यदि कोई भी मेरे अधिकार क्षेत्र में हस्तछेप करे और मेरे सवाल पूछने पर मुझे देशद्रोही कहे तो मुझे देशद्रोही कहलाना पसंद है, देश का संविधान ही देश के नागरिक की रक्षा सुनिचित करता है, कोई दल या शासक नहीं I
Rinki

Wednesday, November 2, 2016

सरहद

जमीन पर एक लकीर खीची
इन्सान चले अपने-अपने ओर
एक ने कहा पाक जमीन
दुसरे ने कहा भारत महान

बैर दोनों ने पाला
कुछ खास लोगो ने कभी
नफरत की आग को बुझने नहीं दिया

जमीन पर खीची लकीर पर
हियासत चलती रही

कुछ परिवार लकीर के साथ रहते है
देखा है उन्होंने
नफरत का अंजाम
बंदूक से चली गोली ने धर्म, बच्चे और बड़े
का फर्क ना जाना
बस अपना काम कर गई

घर दोनों तरफ उजड़े
बच्चो की रोने की आवाज़
एक जैसी लगती है
भूखे पेट और उजड़े खेत
एक जैसे ही देखते है

जमीन पर खीची लकीर

आज आग उगल रही

रिंकी

Sunday, August 21, 2016

चुनाव जिंदगी का

क्या चुने, क्या छोड़े
जिंदगी इसी जद्दोजहद में
गुजारी

सुबह का सुर्ख लाल सूरज
रेत पर लम्बी परछाई बना
सागर में बुझ गया
मैं बस रेत के कण चुनता रहा

प्यार बस सोच तक सिमित रहा
हमेशा मेरे ख्वाब और उसकी
मजबूरियां
एक दुसरे की तरफ पीठ किए
खड़े रहे

अपने ही शोर में बारिश की
बुँदे कभी सुनी नहीं मैंने
थक कर बैठने पर
पाया की बारिश भी सिर्फ तन गिला
कर गई

मन कही सूखे पत्ते सा किसी साख से
लिपटा फड़फड़ा रहा है

मेरे इकठ्ठा किए समान
में कुछ टूटे रिश्ते,
मुस्कुराती दोस्ती, और बादलो पर
सवार सपने है

जिन्हें मैंने चुने

जिंदगी में बुने है

रिंकी राउत

Friday, July 22, 2016

ख़ामोशी प्यार की

ख़ामोशी भी एक तरीका का सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका

मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
तुम मुझसे दूर जाने के बहाने
को समझा नहीं सके
मैं तेरे सही बातो को भी न
समझ सका

हम थे तो आमने –सामने
लेकिन ख़ामोशी की एक खाई सी
हमारे बीच पट्टी थी

एक सवाल
कभी जो कानो में शौर करता
क्या प्यार नहीं है?
और हम दोनों के दरमियाँ
फिर एक लंबी ख़ामोशी

हमेशा के लिए छा गई

रिंकी राउत

Monday, July 4, 2016

बक्से का जादू


जैसे हर जादूगर का अपना
खास जादू होता है
वैसा उसमे भी मोजूद था |

अलमारी में छिपे बक्से का जादू
जब भी बक्सा खुलता
उस पारी का जादू
हर बार मुझे मोहित कर जाता
मिठाई,बिस्कुट, दाल –मोट और बतासे की खुश्बू
उस बक्से के तिलिस्म को और बढ़ा देता
में दादी के पीछे-पीछे
मडराता फिरता


वो अपने-आप को चोदह पोते-पोतियों में
बराबर बंटती फिरती
कभी डराती,कभी चुपके से किसी को
बक्सा खोलकर मिठाई देती|


उस बक्से की जादूगरनी थी वो
आज चाची ने बक्सा खोला
आशचर्य की बात है
जादू नहीं हुआ
मरी दादी का जादू खत्म था
कोई पारी नहीं दिखी


दादी के जाने के बाद
उस बक्से का तिलिस्म हवा हो गया
बक्सा टीना सा मालूम होता है|

Sunday, July 3, 2016

अपनी पहचान ढूँढता हिंदी लेखक


लाइब्रेरी में नई किताब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हिंदी किताबो की गिनती भर उप्लब्धता को देखकर मन जैसे उदासी के कोहरे में डूब गया,जहां तक मेरी नज़र गई अंग्रेगी किताबो की भरमार थी, हर विषय पर कहानी, नॉवेल,सेल्फ हेल्प और  खाना बनाने तक की किताबे थी, पर हिंदी में कोई किताब ढूंढने में कामियाब नहीं हो पाई | प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद,

महादेवी वर्मा आदि की रचना हमेशा से लाइब्रेरी की शोभा बढ़ाती रही  है पर किसी नए हिंदी लेखक को खोज पाना अक्सर मुशकिल हो जाता है| हिंदी साहित्य के इतिहास के बारे में लिखने की मनसा नहीं है मेरी, मैं अपने अनुभव को साझा कर रही हूँ |

हिंदुस्तान में हिंदी लेखको की स्तिथि और दशा पर कोई विचार या सोच बनती नहीं दिखती है, कहने वाले कहते है आज हर कोई लेखक बन गया है, राजनेता,खिलाडी,अभिनेता और आम आदमी भी अपने अनुभव और विचार किताब के मध्यम से साझा कर रहे है,  पर यदि  ध्यान से देखा जाए तो अधिकतर  आर्टिकल, ब्लॉग और किताब अंगरेजी में होती है  रास्ट्रीयभाषा कही- किसी ओट में छिप जाती है| हिंदी में लिख रहे युवा लेखक अंग्रेजी लेखक की तरह लेखनी पर निभर्र रहकर जीविका नहीं कमा सकते |लिखना रोजगार के बाद आता है क्यूंकि हिंदी लेखक होना कोई काम नहीं माना जाता,आप हिंदी लेखक की उपमा लेकर अपनी शादी की बात भी नहीं कर सकते लोग पूछते है लिखना तो ठीक है काम क्या करते हो?

सोच कर बहुत निराशा होती है की वर्त्तमान समय मे हिंदी साहित्य को पहचान देता कोई भी  चेहरा नही है |

युवा लेखक अपना ब्लॉग लिखते है जिसे पढ़ने वालो की संख्या गिनी चुनी होती है हर वक़्त अपनी पहचान की जद्दो-जेहद में कही न कही टूटते तारे के तरह कोई लेखक कही खो जाता है हार जाता है|

पुराने हिंदी लेखक अपनी पहचान लेखक तबके में बना लेते और आसानी से अखबार,मगज़ीन या अन्य माध्यम से अपनी रचना को प्रकाशित करने में सफल हो जाते है, लेकिन  नए लेखको के लिए ब्लॉग छोड़कर कोई जगह उपलब्ध नहीं है रचना प्रकाशित करने के लिए, मैं अक्सर अकबर के एडिटोरिल पेजर को देखकर पाती  हूँ की

वहाँ उन प्रसिद्ध व्यक्ति को ही स्थान मिल पाता जो राजनेता या अखबार से जुड़े सदस्य होते  है |



आज देश में हिंदी के पाठक बहुत कम है, इसका श्रेय अंग्रेजी के गुणगान करने वाले लोगो पर जाता है, युवा वर्ग परीक्षा की किताबे पढने में व्यस्त है, जिनका रुझान साहित्य की तरफ है उन्हें अंग्रेज़ी अपनी ओर खींच ले जाती है |

मैं कही भी पाठको पर हिंदी के लेखको के दशा के लिए जिम्मेदार नहीं मानती क्यूंकि मुझे लगता है की हिंदी किताबो की कम उपलब्धता भी मांग को कम करती है | एक बड़ी अच्छी कहावत है” जो दिखता है वो बिकता है” इस कहावत के अनुसार बाज़ार में जो चीज़ अधिक देखेगी वही बेकेगी भी | हिंदी के लेखक न अक्सर देखे जाते है  न पाए जाते है, लेखकगण भी इस स्थिती को लेकर चिंतित नहीं नज़र आते है |मुझे लगता है एक प्रयास की आवशकता है जहां हिंदी के लेखको को बिना किस रूक-टोक अवसर मिल सके अपनी रचना और विचार को साझा करने का और ये शयद पेहला कदम बदलाव की और होगा |



रिंकी राउत

Sunday, June 26, 2016

तुम से मुलाकात फिर न होगी

तुम से मुलाकात फिर न होगी
जिंदगी में लोंग तो आते रहेगे
पर तेरे-मेरे आँखों में
जो छुपकर होती थी बात
अब किसी ओर के साथ न होगी

Monday, May 23, 2016

अन्नदाता की भूख

देश में चुनाव का दौर चल रहा हैl सभी राजनीतिक पार्टी अपने- अपने दाव-पेच में लगी है,सिर्फ दो तरह के ही काम किए जा रहे हैl एक विपक्ष की आलोचना और दूसरा झूठे वादे करना, आजाद भारत में चुनाव के समय यही चीज़ हर पार्टी को एक दुसरे से जोडती हैl “झूठे वादे और आलोचना” सभी राजनीतिक पार्टी के अधिकार क्षेत्र में आता है, इस अधिकार को उनसे कोई नहीं छीन सकता हैl
अब कुछ बाते किसानो की करते हैl हम सभी ने कभी स्कूल में पढ़ा होगा की भारत कृषि प्रधान देश है,उस पर निबंध भी लिखे होंगेl देश में सबसे अधिक किसान है जो देश को चलाते है अन्ना देते हैl

मुझे सब झूठ लगता है, हमारे स्कूल में हमेशा से झूठ सीखाया जाता रहा हैl हम क्यों नहीं अपने बच्चो को सच पढ़ाते है, की हमारा देश राजनीतिक पार्टी प्रधान देश हैl नेता ही देश को घोटाले और शर्मिंदगी देते हैl
मुझे बचपन में सीखाया गया थाl किसान वो होता हैl जो अनाज उगाता है, ये किताबी परिभाषा हैl समाज की परिभाषा कुछ इस तरह से है, वो जो बेरोजगार हैl किसी भी लायक नहीं है, वोही खेती करता हैl शयद आप मेरी परिभाषा से बिलकुल सहमत नहीं हो, आपके विचार बिलकुल अलग हो, आप को ये भी लग सकता है, की मैं किसानो का अपमान कर रही हूँ, तो आप अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए आपमें से कितने अपने बच्चो को किसान बनाने का सपना देखते हैl सब को तो घर में इंजीनियर या डॉक्टर चाहिए कोई आपने घर में किसी को किसान बनाना नहीं चाहता जिसके बिना इन्सान का पूरा भविष्य दाव पर लगा हैl
देश के किसान की मनोदशा इन पंक्तियों से अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ

रोज़ सोचता गाँव छोड़े
शहर की तरफ खुद को मोड़े
वो देश का अन्नदाता है,
जो भूखे पेट रोज़ सो जाता हैl

“मुंदरी लाल” बुंदेलखंड का किसान आत्महत्या कर लेता हैl क्यूंकि वो बैंक का क़र्ज़ नहीं चूका पाया थाl जिस बैंक से उसने क़र्ज़ लिया था, उस बैंक के क़र्ज़ वसूलने वाले उसे उत्पीडित करते थेl वो इतना डरा की उसने आत्महत्या कर लीl   हमारे देश में माल्या नाम के एक व्यक्ति हैl जिसने देश के बैंकों से उधार लिया था, पर वो आज–काल देश से बाहर निकले हुए है सेहत सुधारने के लिए उन्हें कोई भी उत्पीडित नहीं करता उन्होंने अकेले ही देश में हंगामा मचा रखा हैl
विधर्व और आंध्रप्रदेश का किसान सूखे के कारण और क़र्ज़ न चुकाने के कारण जान दे रहा हैl रोज़ कोई न कोई किसान मर रहा सिर्फ इसलिए नहीं की बारिश नहीं हो रही या वो क़र्ज़ नहीं चूका पा रहा हैl
सबसे बड़ा कारण है की “किसान आत्महत्या” को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा हैl देश में एक भी योजना नहीं है, जो किसानो को सीधे-सीधे लाभ पहुंचाए अनुदान के नाम पर डीजल कम दरो पर मिलता है,वो भी विशेष परिस्तिथि मे,चुनाव के समय किसी भी पार्टी के घोषणापत्र में किसानो की समस्यों की बात नहीं की जाती हैl किसानो के क़र्ज़ माफ़ नहीं किये जाते, कर्जमाफी और अनुदान की सुविधा केवल पूंजीपतियों के लिए है,जो राजनीतिक पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए फण्ड देती हैl बिडम्बना ये है की देश में ग्रामीण क्षेत्र में ही अधिक वोटिंग होती है, ये किसी पार्टी को नहीं देखे देता हैl आपने क्या कभी सोचा है, की एक किसान के आत्महत्या करने से कितना नुकसान होता हैl आर्थिक और सामाजिक स्थर अकाना मेरा बहुत मुश्किल हैl जब कोई किसान आत्महत्या करता है, तो हर किसान का होसला टूट जाता हैl एक अन्नदाता की मौत हो जाती है, साथ में उसके परिवार की भी जो मन ही मन सोच लेता है की घर का कोई बच्चा किसान नहीं बनेगाl

सवाल उठता है,क्या आप और मैं कुछ कर सकते है? हम कोशिश तो कर ही सकते है, पानी और अनाज की बर्बादी को कम कर केl बूंद –बूंद पानी को तरसते किसानो के बारे में सोच कर पानी को बर्बाद होने से बचाएl हर एक अनाज के दाने में किसी न किसी किसान की मेहनत होती हैl
हम जो दुकान से अनाज खरीद कर खाते है शायद ही समझ पाए की हमारे देश में ऐसे बहुत किसान है, जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता हैl आज लाखो किसान खेती छोड़ मजदूरी करने लगा है, क्योंकि जो अनाज वो उगाते है उसे बिचोलिया कम दम में खरीद कर बाज़ार में बहुत मुनाफे में बेचता हैl
इस प्रक्रिया में किसान बड़ी मुश्किल से लागत पूंजी ही निकल पाता हैl आज देश में हर रोज़ जो मरता है वो किसान हैl देश का अन्नदाता भूखे पेट क्यों सोता है?

Rinki


Sunday, May 22, 2016

लत

पीने से कोई सवाल हल नहीं होता
और ना पीने से भी मेरा कोई सवाल हल नहीं हुआ

पीते-पीते मैं पूरी रात पी गया
रात का खोखलापन,
शराब का खालीपन सब पी गया
नशा पर रति भर नहीं चढ़ा
भूली हुई बात, रिश्ता और साथ
सब एक साथ पी गया

पर मेरे कोई सवाल हल नहीं हुआ
इधर शराब की बोतल खाली हो रही थी
उधर दिमाग से दुनियादारी खाली हो रही थी
एक हद के बाद सब बेहद हो गया

मैं और शराब एक हो गये

रिंकी 

Tuesday, April 12, 2016

किसान की भूख

 वो खाली पेट भटक रहा
बंजर पड़ी ज़मीन को
तरही नज़र से ताक रहा
रोज़ सोचता गाँव छोड़े
शहर की तरफ खुद को मोड
वो देश का अनंदाता है
भूखे पेट रोज़ सो जाता है

पेट की तपती आग जब शरीर
को तोड़ जाती है
उसके बच्चो के पेट और पीठ का फर्क मिट जाता है
ईट दर ईट जब बिक जाती है
वो देश का अनंदाता है
खून के आंसू रोता है

वो दुकान से मोल कर भी
अन्न नहीं खरीद नहीं सकता
तब अपने सम्मान के लिए
वो किसान हमेशां के लिए
सो जाता है

भूख से जीत जाता है

Rinki



असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...